हमने भगवान बुद्ध एवं उनके ज्ञान प्राप्ति के विषय में अनेक कहानियां पढ़ी हैं।बचपन से ही मेरे मन में भी एक प्रश्न कौंधता था कि भगवान क्यों चले गए ?एक ऐसी स्त्री को छोड़कर जिसने अभी-अभी एक बालक को जन्म दिया है।उस स्त्री का नाम था यशोधरा,सिद्धार्थ गौतम की विवाहिता और राजकुमार राहुल की मां थी। यशोधरा की हमारे सभ्यता के इतिहास में यही पहचान बनी थी। किंतु इस संपूर्ण परिचय के पश्चात भी मेरे मन का प्रश्न अभी भी हल नहीं हुआ था ।प्रश्न है- कोई स्त्री अभी तक बुध्द क्यों नहीं बन पाई ? इस प्रश्न का उत्तर पाने के परिपेक्ष में, यशोधरा के जीवन से संबंधित साहित्य के कुछ पन्ने पलट कर देखे परंतु वहां भी यशोधरा को सिर्फ गौतम बुद्ध की पत्नी के रूप में इंगित किया गया है।
जबकि मैथिली शरण गुप्त द्वारा रचित यशोधरा काव्य उनके व्यक्तित्व के केवल एक ही पक्ष -विरहणी रूप को उजागर करता है। जिस मां ने अपने सभी आभूषण वस्त्र त्याग दिए और अपने पुत्र का लालन पालन सभी दायित्वों का निर्वाह करते हुए बखूबी किया था ।जो इस बात की पहचान है कि वह एक सशक्त व्यक्तित्व की स्वामिनी थी।एवमं यशोधरा स्वयं इतनी सुलझी हुई स्त्री थी जिन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन के दुख एवं विरह से राहुल को प्रभावित नहीं होने दिया था । गौतम बुध्द के प्रति राहुल के मन में एक भी भावना ऐसी उपजने नहीं दी जिससे राहुल अपने पिता के प्रति घृणा करने लगे ।इस मातृत्व भाव में क्षमा दान करने का सहसा साहस था।इस बिंदु पर शायद ही कभी किसी ने विचार किया होगा। यशोधरा जिन्होंने सौंप दिया अपना बेटा गौतम के चरणों में, इससे बड़ा त्याग और क्या हो सकता है। यशोधरा ने अपने जीवन में सन्यासिनी की जीवन शैली को अपनाकर आदर्श पूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए ,अंत में बुद्ध धर्म को अपनाकर एक भिक्षुणी बन गई ।इस अवस्था में उनके व्यक्तित्व की सर्वोच्च, श्रेष्ठ झलक देखने को मिलती है ।वह कोई साधारण महिला नहीं थी जिन्होंने त्याग दी अपनी संपूर्ण अभिलाषा , राजकाज ,अहम ,प्रेम ,ममता ,एवं सभी विरह पीड़ायें ।इस दृष्टिकोण से यशोधरा की अनुभूति आप सब एक प्रथम बुध्द के रूप में कर सकते है। जब भगवान बुध्द ज्ञान प्राप्ति के पश्चात नगर को लौटे तब यशोधरा का सामना करते समय वे यशोधरा की मौन शक्ति के समक्ष निरुत्तर खड़े पाए गए।
यशोधरा मेरी दृष्टि में प्रथम बुद्ध थी जो जिसका ह्रदय करुणा से भरा हुआ था। संसार की अधिकतम स्त्रियां बुद्ध ही तो हैं। जो सह जाती हैं सब पीडा़ बिना किसी विरोध के…दायित्व ,कर्तव्य, लज्जा या निर्बलता की ओट में ।
असल कारण उनके आन्तरिक शक्ति ही है जो क्षमा कर देती है ।जो प्रेम करती है। जो मां कहलाती है ।जो सह जाती है सबकुछ ।जो अन्नपूर्णा कहलाती है। वह सब बुद्ध ही तो हैं। इसलिए शायद अभी तक किसी स्त्री को अलग से बुध्द होने की आवश्यकता ही नहीं पडी़।
हमारे आपके सामने उदाहरण के रूप में हैं -सीता, राधा, यशोधरा, शकुंतला ,आपकी मां,मेरी मां ,गीता, पूनम, संध्या ,सुनीता, अनीता इत्यादि इत्यादि साक्षात रूप म़ें बुद्ध हैं।
धन्यवाद
संध्या तेतरिया
-भोर
Disclaimer…. व्यक्तिगत विचार निजता से प्रभावित है इसका किसी व्यक्ति विशेष या धर्म की भावनाओं को चोट पहुंचाने कोई उद्देश्य नहीं है ।
yashodhara#life#yqbaba#hindilekh#naari#yqdidi