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सियासत में एक कहावत है- 2 प्लस 2 कभी चार नहीं होता. वर्तमान के राजनीतिक परिदृश्य में इस कहावत की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गई है. सियासी मैथ्य और केमेस्ट्री को दुरुस्त करने के लिए राजनीतिक दल नए समीकरण तैयार कर रहे हैं.

इसी समीकरण को सियासी जानकार गठबंधन का नाम दे रहे हैं. 26 दलों को जुटाकर कांग्रेस सत्ता पलटने का दावा कर रही है, वहीं 38 दलों के साथ लाकर बीजेपी तीसरी बार सरकार बनाने की बात कह रही है.

ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या सच में गठबंधन की पॉलिटिक्स एक बार फिर सत्ता का गुणा-गणित बदल सकती है. अगर, हां तो किन-किन राज्यों में? इस स्टोरी में यह भी जानते हैं कि कहां एनडीए और कहां इंडिया मजबूत है?

बात पहले उन राज्यों की, जहां गठबंधन पॉलिटिक्स हावी

1. उत्तर प्रदेश- यहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीटें हैं. पिछले चुनाव में मायावती, अखिलेश और जयंत एक साथ थे. बीजेपी अनुप्रिया पटेल की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी. कांग्रेस और सुभासपा अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरी.

बीजेपी गठबंधन को 64, सपा गठबंधन को 15 और कांग्रेस को 1 सीटों पर जीत मिली. इस बार बीजेपी ने अपने साथ अपना दल, सुभासपा और निषाद पार्टी को जोड़ा है. दूसरी ओर विपक्षी एकता में सपा, कांग्रेस और जयंत चौधरी की पार्टी है. मायावती अकेले चुनाव लड़ने की बात कह चुकी है.

2022 के आंकड़ों से तुलना किया जाए तो यूपी में बीजेपी की स्थिति मजबूत है. बीजेपी गठबंधन के पास करीब यहां 45 प्रतिशत वोट है, जबकि इंडिया के पास करीब 40 प्रतिशत. मायावती के पास 12 प्रतिशत वोट है. यानी उत्तर प्रदेश में बीजेपी मजबूत है.

2. महाराष्ट्र- यहां की सियासत काफी उलझा हुआ है. एक ओर कांग्रेस के साथ शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद) है, तो दूसरी ओर बीजेपी के साथ शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित) है. बीजेपी ने आरपीआई और प्रहार पार्टी को भी साथ जोड़ा है.

शरद पवार ने दावा किया है कि अगर इंडिया की तीनों पार्टियां एक साथ मिलकर चुनाव लड़ती है, तो बीजेपी को नुकसान हो सकता है. महाराष्ट्र में चुनाव के बाद ही सारे टूट-फूट हुए हैं. इसलिए डेटा के आधार पर यहां कौन मजबूत है, यह कह पाना राजनीतिक जानकारों के लिए मुश्किल भरा है.

महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं, जिसमें से बीजेपी को पिछले चुनाव में 23, शिवसेना को 18 और एनसीपी को 4 सीटें मिली थी. एक सीट पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने भी महाराष्ट्र में खाता खोला था.

3. बिहार- यहां महागठबंधन की स्थिति बीजेपी से ज्यादा मजबूत है. महागठबंधन में कांग्रेस, आरजेडी, जेडीयू और वाममोर्चा शामिल है, जिसका वोट प्रतिशत 50 से भी अधिक है. बिहार में इंडिया के अभी 17 सांसद हैं, जो बंगाल के बाद उत्तर भारत में सबसे अधिक है.

बीजेपी ने यहां महागठबंधन को कमजोर करने के लिए रालोजद, लोजपा और हम को साथ लिया है. इन छोटे दलों के पास करीब 8 प्रतिशत वोट है. वहीं बीजेपी के पास भी बिहार में लगभग 25 प्रतिशत वोट है. बीजेपी छोटे दलों को जोड़कर यहां 2014 की तरह खेल करना चाहती है.

2014 में लोकसभा की 40 में से 31 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी. उस वक्त छोटे दलों को साथ लेने का फॉर्मूला हिट रहा था.

4. तमिलनाडु- एनडीए के मुकाबले यहां भी विपक्षी गठबंधन काफी मजबूत स्थिति में है. तमिलनाडु में बीजेपी ने एआईएडीएमके, एमडीएमके जैसे दलों को साथ जोड़ा है, तो वहीं कांग्रेस के साथ डीएमके, वायके और सीपीआई का मजबूत जोड़ है.

2019 में कांग्रेस गठबंधन को 38 सीटों पर जीत मिली थी. एआईएडीएमके का सिर्फ खाता खुला था. बीजेपी इस बार तमिलनाडु पर ज्यादा फोकस कर रही है. सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि तमिलनाडु के किसी सीट से प्रधानमंत्री चुनाव लड़ सकते हैं.

अमित शाह तमिलनाडु में लोगों से बीजेपी को 25 सीट देने की अपील भी कर चुके हैं. जानकारों का कहना है कि बीजेपी की रणनीति अगर कामयाब हो जाती है, तो तमिलनाडु में बड़ा उलटफेर हो सकता है.

5. पश्चिम बंगाल- यहां लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं, जहां विपक्षी गठबंधन इंडिया का पलड़ा भारी है. 2019 में बंगाल में बीजेपी को 18 सीटों पर जीत मिली थी. अब बंगाल में सियासी परिदृश्य बदल चुका है. तृणमूल के साथ लेफ्ट और कांग्रेस चुनाव लड़ेगी.

2021 के आंकड़ों को देखा जाए तो इंडिया के पास बंगाल में करीब 60 प्रतिशत वोट हैं, जबकि बीजेपी के पास 37 प्रतिशत. ममता बनर्जी ने पिछले 2 साल में तृणमूल को और अधिक मजबूत किया है. जानकारों का कहना है कि तीनों पार्टियां अगल मिलकर चुनाव लड़ती है, तो बंगाल का समीकरण बदल जाएगा.

6. जम्मू और कश्मीर- यहां लोकसभा की 6 सीटें हैं, लेकिन विपक्षी इंडिया ने मजबूत जोड़ तैयार किया है. जम्मू-कश्मीर में पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी गठबंधन से होगा. 2019 के बाद कश्मीर की सियासत पूरी तरह से बदल चुकी है.

जम्मू-कश्मीर में कौन सा पक्ष कितना भारी है, वो चुनाव के बाद ही पता चलेगा. बीजेपी की कोशिश जम्मू क्षेत्र में दबदबा बनाए रखने की है.

7. दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें हैं. 2014 और 2019 के चुनाव में बीजेपी ने सभी सातों सीट पर जीत हासिल की थी. इस बार यहां आप और कांग्रेस साथ आ रही है. 2020 के आंकड़ों को देखे तो इंडिया के पास दिल्ली में 58 प्रतिशत से अधिक वोट है, जबकि बीजेपी के पास 38 फीसदी.

2019 के चुनावी डेटा के लिहाज से बीजेपी की स्थिति मजबूत है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि आप और कांग्रेस अगर साथ मिलकर चुनाव लड़ती है, तो दिल्ली का सियासी समीकरण बदल सकता है.

यहां बीजेपी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला
मध्य प्रदेश, कर्नाटक, हरियाणा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम और उत्तराखंड में बीजेपी का मुकाबला सीधे कांग्रेस से है. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29, कर्नाटक में 28, राजस्थान में 25, असम में 14, छत्तीसगढ़ में 11, हरियाणा में 10 और उत्तराखंड मे 5 सीटें हैं. पिछले चुनाव में इन सभी राज्यों में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की थी.

लेकिन इस बार कर्नाटक, छत्तीसगढ़ और हरियाणा की स्थिति अलग है. कांग्रेस यहां पिछले चुनाव से मजबूत है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद स्थिति साफ हो पाएगी. जानकारों का कहना है कि इन 5 राज्यों की 122 सीटें दिल्ली फतह के लिए काफी अहम है.

कांग्रेस का छोटी पार्टियों से मुकाबला
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और पंजाब में कांग्रेस का मुकाबला सीधे छोटी पार्टियों से है. आंध्र में लोकसभा की 25, केरल में 20, तेलंगाना में 17 और पंजाब में 13 सीटें हैं. पंजाब में आप से सीधा मुकाबला है, जो इंडिया गठबंधन में शामिल है. इसी तरह केरल की सीपीएम भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है.

कांग्रेस तेलंगाना पर विशेष फोकस कर रही है. पार्टी को उम्मीद है कि तेलंगाना की 17 में से कम से कम 10 सीटें उसकी झोली में आ जाएगी. जानकारों का कहना है कि इन राज्यों की 85 सीटें इंडिया के लिए बोनस जैसा है.

यहां छोटी पार्टियों का बीजेपी से मुकाबला
ओडिशा और झारखंड में बीजेपी का सीधा मुकाबला छोटी पार्टियों से है. ओडिशा में 21 और झारखंड में लोकसभा की 14 सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी को इन राज्यों में 22 सीटें मिली थी. इस बार झारखंड में कांग्रेस ने जेएमएम, आरजेडी और जेडीयू के साथ गठबंधन किया है.

ओडिशा में त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन इस बार बीजेडी की स्थिति मजबूत है.

सांसदी में एनडीए तो विधायकी में बीजेपी मजबूत
वर्तमान में सांसदों की संख्या के लिहाज से एनडीए की स्थिति मजबूत है, तो विधायकों की संख्या के मुकाबले इंडिया की. इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों की वर्तमान में 11 राज्यों में सरकारें हैं, जबकि एनडीए पार्टियां देश के 14 राज्यों में सत्तारूढ़ हैं.

ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में गैर-एनडीए और गैर-इंडिया की सरकार है. लोकसभा की 333 सीटों एनडीए के पास है, जबकि 142 इंडिया के पास. इसी तरह राज्यसभा में एनडीए के पास 105 सीट है और इंडिया के पास 92.

देश की कुल 4120 विधानसभा सीटों में से इंडिया गठबंधन के पास 1852 और एनडीए के पास 1585 सीटें हैं. शेष 683 उन पार्टियों के पास है, जो न एनडीए के साथ है और न इंडिया के साथ.

सर्वे एजेंसी सीएसडीएस के मुताबिक राज्यों में पिछले विधानसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन-सहयोगियों को 39.7% तो एनडीए पार्टियों को 34.7% वोट मिले हैं. 25.5% वोट गैर-एनडीए और गैर-इंडिया दलों को मिला.

हालांकि, लोकसभा चुनाव का ट्रेंड अलग है. एनडीए में शामिल दलों का वोट प्रतिशत 2019 के मुताबिक 45 प्रतिशत के आसपास है. एनडीए के मुकाबले इंडिया के सहयोगी दलों का वोट प्रतिशत 38 के करीब है.

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