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मोगली पलटन ने किया सतत् विकास कार्यशाला का आयोजन

महात्मा गाँधी ने कहा था-“ये धरती हमारी जरूरतें पूरी कर सकती है, लालच नहीं”।
ऋषिकेश फ़ाउण्डेशन की बाल सेना मोगली पलटन द्वारा अपने मासिक आयोजन “आज कुछ खास है” के तहत सतत् विकास की संकल्पना पर आधारित एक कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला को कक्षा एक से कक्षा आठ तक के बच्चों के लिए डिज़ाइन किया गया था।
कार्यशाला के विषय में फ़ाउण्डेशन के प्रवक्ता सचिन पांडे ने बताया कि सबसे पहले सभी बच्चों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया गया-कक्षा-1 और 2, कक्षा-3 और 4, तथा कक्षा 6 और 7। एक कमरे में तीन मेजों पर क्रमशः बिस्किट, फल और जूस के बॉटल रख दिए गए। कमरे में कितनी मात्रा में क्या रखा है, ये सिर्फ अंदर जाने पर ही पता चलेगा। सबसे पहले बड़े बच्चों (6,7) को कहा गया आप उस कमरे में जाकर अपनी मर्जी से जो चाहे ले सकते हैं। अंदर पहुंचते ही बच्चों में अधिक से अधिक समेटने की होड़ मच गई। कोई ओली में भर रहा था, तो कोई जेबों में, तो कोई पॉलीथिन में ठूँस रहा था।
इनके बाद जब कक्षा 3,4 के बच्चों भेजा गया तो मेज पूरी खाली हो चुकी थी। वो अपने को ठगा सा महसूस कर रहे थे। उनके चेहरे उतर गए और मायूस होकर वो वापस लौट आए।
इसके बाद जब पहली, दूसरी के बच्चे कमरे में पहुंचे तो खाली मेज देखकर उन्हें भरोसा ही नहीं हुआ, वो डस्टबिन में कुछ बचा-कुचा तलाशने लगे, पर वहाँ भी कुछ नहीं था। वो भी दुखी होकर लौट आए।
अंत में सभी बच्चों को एक साथ बैठाया गया। वहाँ पहले समूह के हर बच्चे के पास 6-6 बॉटल जूस, 5-6 पैकेट बिस्किट और ऐसे ही संख्या में संतरे थे। वहीं दूसरी ओर बाक़ी दो समूहों के हाथ सूने थे। पहले समूह को समझाया गया यदि आपने अपनी ज़रूरत भर का सामान लिया होता तो अगले समूह को भी सब मिल जाता, और अगर वो भी समझदारी से बिना लालच के सामान उठाते तो आख़िरी समूह को भी सब उपलब्ध होता।
पहले समूह को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी बाक़ी सभी बच्चों में भी फल, जूस और बिस्किट बाँट लिए।
सचिन पांडे ने कहा कि कार्यशाला के माध्यम से बच्चों को यही संदेश दिया गया कि धरती में संसाधन सीमित हैं; यदि आप हवा, पानी, मिट्टी, नदी, पहाड़, जंगल का अपनी जरूरत भर का इस्तेमाल करेंगे तो ही धरती में जीवन बचा रहेगा। यदि हम ऐसे ही लालची बने रहे तो धरती से आदमी समाप्त हो जाएगा।
अपनी ज़रूरत भर का खाइए, ताकि आपके बच्चे और उनके भी बच्चे भूँखे ना रह जाएँ यही सतत् विकास है।
सादर प्रकशनार्थ
प्रवक्ता
ऋषिकेश फाउंडेशन

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