नई दिल्ली, 5 मार्च 2025: आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के एक महत्वपूर्ण शोध पत्र में खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, जो 2000 में आर्थिक रूप से भिन्न स्थिति में थे, ने पिछले दो दशकों में औद्योगिक नीतियों और सरकारी पहलों के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है। शोध पत्र, जिसका शीर्षक “द ग्रेट कन्वर्जेंस: ए केस स्टडी ऑफ उत्तराखंड एंड हिमाचल प्रदेश (2000-2020)” है, प्रोफेसर शमिका रवि (ईएसी-पीएम की सदस्य) और अलोक कुमार (उत्तर प्रदेश सरकार में उद्योग और एमएसएमई के प्रमुख सचिव) द्वारा लिखा गया है। यह अध्ययन 28 फरवरी, 2025 को प्रकाशित हुआ और इसे ईएसी-पीएम की वर्किंग पेपर सीरीज़ में शामिल किया गया।
2003 का औद्योगिक पैकेज: परिवर्तन का प्रारंभ
शोध के अनुसार, 2000 में उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय हिमाचल प्रदेश की तुलना में काफी कम थी, लेकिन 2003 में भारत सरकार द्वारा पहाड़ी राज्यों के लिए घोषित “कन्सेशनल इंडस्ट्रियल पैकेज” ने दोनों राज्यों में आर्थिक विकास की गति को तेज कर दिया। प्रोफेसर शमिका रवि ने अपने ट्वीट में कहा, “सिर्फ 10 सालों में उत्तराखंड ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करते हुए हिमाचल प्रदेश के साथ आय के अंतर को कम किया।” यह पैकेज कर छूट, बुनियादी ढांचा विकास और निवेश प्रोत्साहन जैसी सुविधाएं प्रदान करता था, जिसने दोनों राज्यों को औद्योगिक विकास के लिए प्रेरित किया।
नीतियों में अंतर: उत्तराखंड की सफलता की कहानी
शोध पत्र में बताया गया कि दोनों राज्यों ने समान औद्योगिक नीतियों को अपनाया, लेकिन भूमि नीति और नगर नियोजन में एक महत्वपूर्ण अंतर था, जो उत्तराखंड को हिमाचल से आगे ले गया। उत्तराखंड सरकार ने कई औद्योगिक संपदा (इंडस्ट्रियल एस्टेट्स) बनाने के लिए नवाचारपूर्ण कदम उठाए, जहां कंपनियों को नियोजित क्षेत्रों में भूमि उपलब्ध कराई गई। इसके विपरीत, हिमाचल प्रदेश ने कंपनियों को सीधे किसानों से भूमि खरीदने की अनुमति दी, जिसके परिणामस्वरूप औद्योगिक विकास में असंगति और धीमी प्रगति हुई।
प्रमुख आर्थिक परिणाम
शोध पत्र में विस्तृत आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं, जो उत्तराखंड की सफलता को रेखांकित करते हैं:
1. प्रति व्यक्ति क्षेत्रीय उत्पाद (जीआरपी):* 2000 से 2019 के बीच उत्तराखंड का प्रति व्यक्ति जीआरपी तेजी से बढ़ा, जो 2000 में ₹28,585 था, वह 2019 में ₹1,70,570 तक पहुंच गया। इस दौरान हिमाचल प्रदेश का प्रति व्यक्ति जीआरपी ₹53,153 से बढ़कर ₹1,64,553 हो गया। यह तुलना दिखाती है कि उत्तराखंड ने हिमाचल के साथ आय के अंतर को काफी हद तक कम कर लिया।
2. विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि:* उत्तराखंड में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 9.5 गुना बढ़ा, जबकि हिमाचल में यह केवल 4.6 गुना रहा। विनिर्माण क्षेत्र की इस वृद्धि ने उत्तराखंड की समग्र अर्थव्यवस्था पर मल्टीप्लायर प्रभाव डाला, जिसमें रोजगार सृजन, राज्य के राजस्व और बुनियादी ढांचे में सुधार शामिल हैं।
3. सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी):* 2000 से 2011 के बीच उत्तराखंड का जीएसडीपी 11.05 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ा, जबकि हिमाचल प्रदेश में यह दर केवल 6.91 प्रतिशत रही। 2011 के बाद भी उत्तराखंड ने इस वृद्धि को बनाए रखा।
4. राजस्व में वृद्धि:* उत्तराखंड ने अपने स्वयं के कर राजस्व (स्टेट ओन टैक्स रेवेन्यू, एसओटीआर) को 22 वर्षों में 18 गुना बढ़ाया, जो हर पांच साल में दोगुना होने के बराबर है। यह वृद्धि राज्य की वित्तीय स्थिरता और विकास परियोजनाओं के लिए धन उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण साबित हुई।
5. रोजगार और आय में सुधार:* औद्योगिक संपदा और विनिर्माण क्षेत्र के विकास ने उत्तराखंड में रोजगार के अवसरों में तेजी से वृद्धि की, जिससे प्रति व्यक्ति आय और जीवन स्तर में सुधार हुआ।
हिमाचल की चुनौतियां
हालांकि हिमाचल प्रदेश ने भी आर्थिक प्रगति की, लेकिन शोध में पाया गया कि भूमि नीति और नगर नियोजन की कमी के कारण इसका औद्योगिक विकास उत्तराखंड की तुलना में धीमा रहा। हिमाचल में कंपनियों को सीधे किसानों से भूमि खरीदने की अनुमति देने से भूमि अधिग्रहण में देरी और असंगति हुई, जिसने बड़े पैमाने पर औद्योगिक परियोजनाओं को प्रभावित किया। इसके बावजूद, हिमाचल ने कृषि और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में प्रगति की, लेकिन विनिर्माण क्षेत्र में उत्तराखंड से पीछे रहा।
वेब परिणामों से समर्थन
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट (5 मार्च, 2025) ने इस शोध को उद्धृत करते हुए कहा कि उत्तराखंड ने नियोजित औद्योगिककरण के जरिए हिमाचल से बेहतर प्रदर्शन किया। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि ने उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था और कर आधार पर मल्टीप्लियर प्रभाव डाला। हिमाचल प्रदेश के आर्थिक सर्वेक्षण (2021-22) के आंकड़ों से पता चलता है कि हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय (₹2,01,271) राष्ट्रीय औसत (₹1,50,007) से अधिक रही, लेकिन औद्योगिक विकास में उत्तराखंड की प्रगति से वह पीछे रह
विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
प्रोफेसर शमिका रवि, जो ईएसी-पीएम की सदस्य और भारत सरकार में सचिव भी हैं, ने कहा, “यह अध्ययन दिखाता है कि सही नीतियों और नवाचारों के साथ पहाड़ी राज्यों में भी आर्थिक विकास संभव है। उत्तराखंड का उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि योजना और कार्यान्वयन में अंतर से लंबी अवधि के परिणाम बदल सकते हैं।” कई ट्विटर उपयोगकर्ताओं ने इस अध्ययन की प्रशंसा की और पूर्ण पेपर के लिए लिंक मांगा, जिसे प्रोफेसर रवि ने https://t.co/WFDEpGHFFq पर साझा किया।
भविष्य के लिए सबक
यह शोध न केवल उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के लिए बल्कि अन्य पहाड़ी और विकासशील राज्यों के लिए भी एक महत्वपूर्ण सबक है। यह दर्शाता है कि औद्योगिक विकास के लिए भूमि उपयोग नीति, नगर नियोजन और सरकारी प्रोत्साहन की रणनीतिक भूमिका कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है। ईएसी-पीएम का यह पेपर विकासशील क्षेत्रों में आर्थिक नीतियों को आकार देने में मददगार साबित हो सकता है।
पूरा शोध पत्र ईएसी-पीएम की वेबसाइट पर उपलब्ध है, और इसे अर्थशास्त्रियों, नीति निर्माताओं और शोधकर्ताओं द्वारा व्यापक रूप से पढ़ा और चर्चा किया जा रहा है। यह अध्ययन न केवल आर्थिक विकास के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है, बल्कि पहाड़ी राज्यों के लिए एक प्रेरणादायक मॉडल भी प्रस्तुत करता है ।