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वसुंधरा राजे – क्या मिलेगी बड़ी भूमिका या फिर खुद तय करेगी अपना रोल?

भाजपा ने पिछले दिनों स्टेट इलेक्शन मैनेजमेंट और मेनिफेस्टो कमेटी बनाई. गौर करने वाली बात ये है कि पार्टी ने किसी भी कमेटी में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को जगह नहीं दी है. इन सबके बीच सवाल ये है कि क्या राजस्थान में वसुंधरा राजे के लिए अब कुछ नहीं बचा है? आखिर बीजेपी के इस फैसले के क्या मायने हैं? सवाल ये भी है कि वसुंधरा राजे को साइड लाइन करके बीजेपी किस फॉर्मूले पर राजस्थान का चुनाव लड़ेगी? 

वसुंधरा राजे दो बार राजस्थान की सीएम रह चुकी हैं और लोकप्रियता के मामले में उनके सामने कोई भी बीजेपी नेता राजस्थान में नजर नहीं आता। वसुंधरा जी को नेतृत्व नहीं देने पर वसुंधरा समर्थक केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती देने को तैयार बैठे हैं।

दो कमेटियों में वसुंधरा राजे को जगह नहीं दिए जाने का मामला उठा, तो बीजेपी ने अपनी तरफ से सफाई भी दी गईं। पार्टी का कहना है कि राजे एक जानी मानी और लोकप्रिय नेता और राजस्थान में बड़ा चेहरा हैं। उनके लिए दूसरा रोल है. लिहाजा उन्हें ऐसी कमेटियों में शामिल करने की जरूरत नहीं। वहीं, बीजेपी ने राजस्थान से पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए भी स्टेट इलेक्शन मैनेजमेंट कमेटी का ऐलान किया। पार्टी के तर्क से उलट मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बड़े चेहरों को कमेटियों में शामिल किया गया है.

दूसरी तरफ कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर वसुंधरा जी को चेहरा नहीं बनाया गया तो उनके समर्थक तीसरा मोर्चा बनाएंगे। जिस तरह से भाजपा में जननेताओं और स्थानीय नेताओं को दरकिनार किया जा रहा है। ये बीजेपी के लिए अच्छे संकेत नहीं है। अगर राजस्थान में ऐसा हुआ तो बीजेपी को यहां भी मुश्किल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।

जनता पर वसुंधरा की मजबूत पकड़ न सिर्फ विरोधियों बल्कि पार्टी के भीतर विरोधियों पर भी भारी है। दिवंगत नेता भैरो सिंह शेखावत के बाद पूरे राजस्थान में शायद ही किसी नेता का कद वसुंधरा राजे के कद के बराबर है। वसुन्धरा की यह ताकत पार्टी के लिए वरदान है, वसुन्धरा से इतर सोचना पार्टी के लिए आसान नहीं है।राजस्थान की राजनीति जाट, राजपूत, ब्राह्मण, गुर्जर और मीणा जैसी जातियों के इर्द गिर्द घूमती है। जातियों के इस पेंच में सबसे लोकप्रिय नेता के तौर पर वसुंधरा राजे बीजेपी में सबसे आगे नजर आती हैं। राज्य के सभी इलाकों और जातियों में वसुन्धरा राजे के जनाधार का तोड़ बीजेपी के पास नहीं दिख रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि वसुंधरा राजे के बिना राजस्थान के रण में बीजेपी का जीतना बेहद मुश्किल नजर आ रहा है। एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक होने के बावजूद वसुन्धरा का जीवन बहुत संघर्षमय बीता, लेकिन जीवन के हर संघर्ष का उन्होंने दृढ़ता से सामना किया।

अशोक गहलोत का क्या कहना है इस बारे में

आगामी विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रणनीति पर चुटकी लेते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पार्टी द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगे नहीं किए जाने को लेकर सवाल उठाया। गहलोत ने कहा कि खुद को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के रूप में देख रहे भाजपा के स्थानीय नेता चुनाव जीतने में नाकाबिल हैं, इसलिए पार्टी ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे किया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले दिनों अपने निवास पर मीडियाकर्मियों से कहा कि राजे हाल ही में जयपुर में राज्य सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल क्यों नहीं हुईं। गहलोत ने कहा कि कई बार चुनाव जीतने वाले भाजपा के स्थानीय नेता 25-30 साल में भी इतने काबिल नहीं बन पाए हैं कि राज्य का चुनाव उनके चेहरे पर लड़ा जाए।

राजस्थान चुनाव से पहले क्या वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के तौर पर आगे किया जाएगा. क्या गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर, भूपेंद्र यादव, सुनील बंसल, अर्जुनराम मेघवाल या किसी अन्य नेता को बड़ी भूमिका में लाया जाएगा. ऐसे कई सवाल है, लेकिन भाजपा ने इस बार ये तय कर दिया है कि वो विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं करेगी. पीएम मोदी के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा जाएगा। अब देखना है ऊंट किस करवट बैठता है।

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