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अमेरिका-भारत टैरिफ समीकरण – कौन जीतता है, कौन हारता है?

नई दिल्ली, 12 मार्च 2025: वैश्विक व्यापार के क्षेत्र में अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ (शुल्क) को लेकर चर्चा एक बार फिर सुर्खियों में है। मनीकंट्रोल की एक हालिया रिपोर्ट, “चार्ट ऑफ द डे: द यूएस-इंडिया टैरिफ्स इक्वेशन – हू विन्स, हू लूज़ेस” में इस जटिल व्यापारिक समीकरण पर गहराई से विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह रिपोर्ट अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हालिया बयानों और नीतियों के संदर्भ में भारत के उच्च टैरिफ की आलोचना और इसके संभावित प्रभावों को रेखांकित करती है। आइए, इस समाचार को विस्तार से समझते हैं।

टैरिफ विवाद का पृष्ठभूमि
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में भारत पर “बहुत ऊंचे” टैरिफ लगाने का आरोप लगाया है और इसे लेकर पारस्परिक (रेसिप्रोकल) शुल्क लगाने की धमकी दी है, जो 2 अप्रैल से प्रभावी हो सकती है। ट्रम्प का कहना है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर भारी शुल्क लगाता है, जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है। दूसरी ओर, भारत का तर्क है कि उसकी टैरिफ नीतियाँ विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के अनुरूप हैं और ये नीतियाँ अमेरिका-विशिष्ट नहीं हैं, बल्कि सभी देशों के लिए समान रूप से लागू होती हैं।

मनीकंट्रोल की रिपोर्ट में एक चार्ट के माध्यम से दोनों देशों के बीच टैरिफ दरों की तुलना की गई है। यह चार्ट दर्शाता है कि भारत कुछ श्रेणियों में अमेरिका की तुलना में अधिक टैरिफ लगाता है, खासकर कृषि उत्पादों, ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए, भारत अमेरिकी ऑटोमोबाइल पर 100% तक टैरिफ लगा सकता है, जबकि अमेरिका भारतीय ऑटोमोबाइल पर औसतन 2.5% शुल्क लेता है। इसी तरह, भारत में आयातित व्हिस्की और मोटरसाइकिल जैसे लक्जरी उत्पादों पर भी भारी शुल्क देखा जाता है।
कौन जीतता है, कौन हारता है?

रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है कि यदि टैरिफ युद्ध शुरू होता है, तो इसका असर दोनों देशों पर क्या होगा।

विश्लेषण के अनुसार:

भारत के लिए संभावित नुकसान:
भारत अमेरिका को लगभग 83 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जिसमें टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, और सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ शामिल हैं। यदि अमेरिका पारस्परिक शुल्क लागू करता है, तो भारतीय निर्यातकों को नुकसान हो सकता है। खासकर टेक्सटाइल और कपड़ा क्षेत्र, जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं, पर भारी असर पड़ सकता है। साथ ही, भारतीय अर्थव्यवस्था, जो अभी भी वैश्विक मंदी और रुपये की गिरावट से जूझ रही है, के लिए यह एक और चुनौती होगी।
अमेरिका के लिए प्रभाव:
अमेरिका भारत को लगभग 58 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जिसमें ऊर्जा उत्पाद, हथियार, और तकनीकी उपकरण शामिल हैं। भारत ने हाल ही में ट्रम्प प्रशासन को खुश करने के लिए कुछ उत्पादों, जैसे हाई-एंड मोटरसाइकिल और व्हिस्की पर टैरिफ कम करने की घोषणा की है।

हालांकि, यदि भारत जवाबी कार्रवाई करता है और अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाता है, तो अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं को भी उच्च कीमतों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि भारतीय उत्पादों की जगह लेना आसान नहीं होगा।

वैश्विक व्यापार पर असर:
यह टैरिफ विवाद केवल द्विपक्षीय नहीं है। यदि अमेरिका भारत पर शुल्क लगाता है, तो भारत अन्य व्यापारिक साझेदारों, जैसे यूरोपीय संघ या चीन, की ओर रुख कर सकता है। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो सकती है और व्यापार युद्ध की स्थिति और गंभीर हो सकती है।

भारत की रणनीति और प्रतिक्रिया
भारतीय सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह अमेरिका के साथ टैरिफ कम करने को लेकर कोई ठोस वादा नहीं कर रही है। वाणिज्य सचिव ने संसदीय समिति को बताया कि टैरिफ में कोई भी बदलाव द्विपक्षीय बातचीत के आधार पर होगा, न कि एकतरफा दबाव के तहत। भारत का कहना है कि उसके उच्च टैरिफ का उद्देश्य घरेलू उद्योगों और किसानों को संरक्षण देना है, जो अभी भी विकासशील अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के हफ्तों में ट्रम्प प्रशासन के साथ संबंधों को बेहतर करने की कोशिश की है। इसमें अमेरिकी ऊर्जा और हथियारों की खरीद बढ़ाने का वादा शामिल है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी नीतियों में संतुलन बनाना होगा ताकि घरेलू हितों की रक्षा हो और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंध भी बने रहें।

विशेषज्ञों की राय
रिपोर्ट में उद्धृत विशेषज्ञों का कहना है कि यह टैरिफ समीकरण “जीत-हार” का खेल नहीं है, बल्कि दोनों देशों के लिए एक समझौता खोजने की जरूरत है। एक अर्थशास्त्री ने कहा, “भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के बाजारों की जरूरत है। यदि दोनों पक्ष टैरिफ युद्ध में उलझते हैं, तो इसका नुकसान दोनों को ही होगा।” कुछ का यह भी मानना है कि भारत को अपने टैरिफ ढांचे की समीक्षा करनी चाहिए, ताकि यह वैश्विक व्यापार में अधिक प्रतिस्पर्धी बन सके।

निष्कर्ष
अमेरिका-भारत टैरिफ विवाद एक जटिल मुद्दा है, जिसमें आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक पहलू शामिल हैं। मनीकंट्रोल की यह रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि दोनों देशों के बीच संतुलन बनाना आसान नहीं होगा। जैसे-जैसे 2 अप्रैल की समय सीमा नजदीक आ रही है, सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भारत और अमेरिका कोई बीच का रास्ता निकाल पाएंगे, या यह विवाद वैश्विक व्यापार में एक नया तनाव पैदा करेगा।

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