हरियाणा, 26 मार्च 2025: हरियाणा के कुरुक्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद नवीन जिंदल ने आज संसद में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड सीड ऑयल के बढ़ते उपयोग से होने वाले स्वास्थ्य खतरों पर गंभीर चिंता जताई। उन्होंने इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति गठित करने और इसके प्रभावों को जांचने के लिए एक व्हाइट पेपर (White Paper) जारी करने की मांग की, ताकि आम जनता को इनके संभावित नुकसानों के बारे में सही जानकारी मिल सके।
संसद में नवीन जिंदल का बयान
संसद सत्र के दौरान नवीन जिंदल ने कहा, “अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड सीड ऑयल हमारी सेहत के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं। भारत में डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोगों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, और इसका मुख्य कारण हमारा खानपान है।” उन्होंने बताया कि रिफाइंड तेलों को अक्सर ‘स्वस्थ’ बताकर बेचा जाता है, जो उपभोक्ताओं को गुमराह करता है। जिंदल ने सरकार से मांग की कि खाद्य उत्पादों पर स्पष्ट फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग और क्यूआर कोड आधारित पारदर्शिता को अनिवार्य किया जाए, ताकि उपभोक्ता यह जान सकें कि वे क्या खा रहे हैं।
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड तेल के खतरे
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड में अक्सर अधिक मात्रा में चीनी, नमक, अस्वास्थ्यकर वसा, कृत्रिम रंग, फ्लेवर और स्टेबलाइजर्स होते हैं। ये खाद्य पदार्थ, जैसे फ्रोजन मील्स, सॉफ्ट ड्रिंक्स, पैकेज्ड स्नैक्स, केक और कुकीज, न केवल पोषक तत्वों से रहित होते हैं, बल्कि कई गंभीर बीमारियों का कारण भी बनते हैं। ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (BMJ) की 2024 की एक समीक्षा के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन 32 स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है, जिनमें हृदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज, कैंसर, मोटापा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं शामिल हैं।
इसी तरह, रिफाइंड सीड ऑयल, जैसे सोयाबीन तेल, अपनी भारी प्रोसेसिंग के कारण पोषक तत्व खो देते हैं और इनमें मौजूद ओमेगा-6 फैटी एसिड की अधिकता शरीर में सूजन को बढ़ा सकती है। 2016 में प्रकाशित एक शोध पत्र, “Medicines and Vegetable Oils as Hidden Causes of Cardiovascular Disease and Diabetes” (Karger Publishers), में बताया गया कि कुछ रिफाइंड तेल और हाइड्रोजनीकृत तेल स्ट्रोक-प्रोन चूहों की आयु कम करते हैं और किडनी फंक्शन को नुकसान पहुंचाते हैं।
भारत में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं
भारत में डायबिटीज और हृदय रोगों की बढ़ती दर चिंता का विषय है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में 77 मिलियन से अधिक लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, और यह संख्या 2030 तक 134 मिलियन तक पहुंच सकती है। हृदय रोग भी भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है। नवीन जिंदल ने अपने बयान में कहा, “उपभोक्ताओं को यह जानने का अधिकार है कि वे क्या खा रहे हैं। हमें तत्काल कदम उठाने की जरूरत है ताकि लोगों को सही जानकारी मिले और वे अपनी सेहत को लेकर जागरूक हों।”
विशेषज्ञ समिति और व्हाइट पेपर की मांग
नवीन जिंदल ने सरकार से एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की, जो अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड तेलों के प्रभावों की गहन जांच करे। इसके साथ ही, उन्होंने एक व्हाइट पेपर जारी करने का सुझाव दिया, जिसमें इन खाद्य पदार्थों से होने वाले स्वास्थ्य खतरों की विस्तृत जानकारी हो। व्हाइट पेपर एक आधिकारिक दस्तावेज होता है, जो किसी मुद्दे पर सरकार की नीति और प्रस्तावों को स्पष्ट करता है। इससे पहले, भारत सरकार ने कोविड-19 प्रबंधन पर भी एक व्हाइट पेपर जारी किया था, जिसमें पारदर्शिता और जागरूकता पर जोर दिया गया था।
वैश्विक संदर्भ में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की समस्या
अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं है। 2019 में प्रकाशित एक BMJ लेख, “Ultra-processed food and adverse health outcomes,” में बताया गया कि पिछले कुछ दशकों में वैश्विक खाद्य आपूर्ति में औद्योगिक रूप से प्रोसेस्ड उत्पादों की मात्रा बढ़ी है, जिसके साथ मोटापा और गैर-संचारी रोगों की दर में भी वृद्धि हुई है। NOVA खाद्य वर्गीकरण प्रणाली के अनुसार, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड को चार श्रेणियों में बांटा गया है, जिसमें ये खाद्य पदार्थ रासायनिक प्रक्रियाओं से तैयार किए जाते हैं और इन्हें स्वादिष्ट बनाने के लिए कृत्रिम additives का उपयोग किया जाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड तेलों के सेवन को कम करने के लिए जागरूकता के साथ-साथ नीतिगत बदलाव भी जरूरी हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट (25 नवंबर 2024) में बताया गया कि अमेरिका में राष्ट्रपति-चुनाव ट्रंप के स्वास्थ्य और मानव सेवा (HHS) नामित उम्मीदवार, रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर, ने भी अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड के खिलाफ अभियान चलाने की योजना बनाई है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि ताजा और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करना चाहिए और प्रोसेस्ड फूड से दूरी बनानी चाहिए।
निष्कर्ष
नवीन जिंदल द्वारा संसद में उठाया गया यह मुद्दा भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड और रिफाइंड तेलों के बढ़ते उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सरकार को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है। विशेषज्ञ समिति और व्हाइट पेपर के जरिए न केवल जागरूकता बढ़ाई जा सकती है, बल्कि खाद्य उद्योग में पारदर्शिता और जवाबदेही भी सुनिश्चित की जा सकती है।