दिनांक: 19 मार्च 2025
टेस्ला की भारत में बहुप्रतीक्षित एंट्री उद्योग जगत के नेताओं के बीच बहस का विषय बन गई है। कुछ लोग इसके सफल होने पर संदेह जता रहे हैं, तो कुछ इसे एक सुनहरे अवसर के रूप में देखते हैं। इस बीच, जेएसडब्ल्यू ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल ने हाल ही में टेस्ला की भारत में सफलता पर संदेह जताया है। उनका मानना है कि टेस्ला का भारतीय इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बाजार में प्रवेश आसान नहीं होगा। हालांकि, उनका यह बयान केवल संदेह तक सीमित नहीं है, बल्कि वे यह भी मानते हैं कि विदेशी ऑटो कंपनियों का आगमन भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दे सकता है और नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है। क्या टेस्ला भारत के ईवी क्षेत्र में “कैटफिश प्रभाव” (Catfish Effect) पैदा कर सकती है? आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें।
कैटफिश प्रभाव क्या है?
“कैटफिश प्रभाव” का नाम उस प्रथा से लिया गया है, जिसमें कोड मछलियों को परिवहन के दौरान सक्रिय रखने के लिए उनके टैंकों में कैटफिश डाली जाती थी। यह प्रभाव बताता है कि एक मजबूत प्रतिस्पर्धी की मौजूदगी सुस्त बाजार को ऊर्जा प्रदान कर सकती है। टेस्ला का भारत में आगमन भारतीय ईवी उद्योग के लिए ऐसा ही एक झटका हो सकता है, जो इसे नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है। उदाहरण के लिए, चीन में टेस्ला के शंघाई में एक पूर्ण स्वामित्व वाली गीगाफैक्ट्री स्थापित करने के छह साल बाद ही वहां की इलेक्ट्रिक वाहन कंपनियों ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की। यह सफलता सरकार के उदार प्रोत्साहनों और टेस्ला की उपस्थिति से संभव हुई।
सज्जन जिंदल का दृष्टिकोण
जेएसडब्ल्यू ग्रुप के चेयरमैन सज्जन जिंदल ने हाल ही में कहा कि टेस्ला का भारतीय ईवी बाजार में प्रवेश आसान नहीं होगा। उनका यह बयान केवल इच्छाधारी सोच नहीं है, बल्कि वे यह भी संकेत देते हैं कि टेस्ला का आगमन भारतीय उद्योग के लिए बड़े अवसरों को छिपाए हुए है। जिंदल ने टेस्ला की भारत में सफलता पर संदेह जताते हुए कहा, “एलन मस्क यहां नहीं हैं। वह अमेरिका में हैं… हम भारतीय यहां हैं। वह वह नहीं बना सकते जो महिंद्रा कर सकता है, जो टाटा कर सकता है—यह संभव नहीं है।” हालांकि, उन्होंने मस्क की उपलब्धियों की सराहना भी की और उन्हें “सुपर स्मार्ट” और “मावरिक” करार दिया।
जिंदल का यह बयान टेस्ला के भारत में प्रवेश के संदर्भ में आया है, लेकिन उनके द्वारा बताई गई कठिनाइयां सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) पर लागू होती हैं। उदाहरण के लिए, हुंडई को संबंधित पक्षों के लेनदेन पर एक प्रॉक्सी सलाहकार की आपत्ति का सामना करना पड़ रहा है, जबकि वोक्सवैगन और किआ मोटर्स पर कर चोरी के आरोप लगे हैं, हालांकि किआ ने बाद में अपनी प्रथाओं को बदलकर राहत पाई।
भारतीय ऑटो सेक्टर में विदेशी कंपनियों का इतिहास
पिछले 40 वर्षों में भारतीय ऑटो सेक्टर में केवल एक विदेशी कंपनी, सुजुकी, ने वास्तविक सफलता हासिल की है। सुजुकी की तकनीक और जानकारी ने मारुति को नेतृत्व की स्थिति तक पहुंचाया। लेकिन अन्य विदेशी कंपनियों, जैसे जनरल मोटर्स और फोर्ड, को भारत में अपने कारोबार को बंद करना पड़ा। जिंदल का मानना है कि भारतीय बाजार की गहरी समझ और स्थानीय जरूरतों के अनुरूप उत्पाद बनाने की क्षमता टाटा और महिंद्रा जैसे घरेलू खिलाड़ियों को बढ़त देती है।
टेस्ला का भारत में कदम
टेस्ला ने हाल ही में मुंबई में एक शोरूम के लिए पांच साल का लीज एग्रीमेंट साइन किया है, जो 16 फरवरी 2025 से शुरू होगा। इसके अलावा, कंपनी ने नई दिल्ली और मुंबई में शोरूम स्थानों की पहचान की है। यह कदम एलन मस्क और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पिछले साल अमेरिका में हुई मुलाकात के बाद आया है। हालांकि, भारत में उच्च आयात शुल्क टेस्ला के लिए एक बड़ी बाधा बने हुए हैं। वर्तमान में, पूरी तरह से निर्मित आयातित ईवी पर 100% से अधिक शुल्क लगता है, जिससे टेस्ला की कीमतें भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाना मुश्किल हो जाता है।
सरकार की नीति और अवसर
भारत सरकार ने इलेक्ट्रिक पैसेंजर कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (एसएमईसी) शुरू की है, जो न्यूनतम 500 मिलियन डॉलर के निवेश करने वाली कंपनियों को पांच साल तक 15% कम शुल्क पर हाई-एंड ईवी आयात करने की अनुमति देती है। यह टेस्ला के लिए एक रास्ता हो सकता है, लेकिन स्थानीय विनिर्माण के बिना भी बाजार में प्रवेश करना चुनौतीपूर्ण रहेगा। सरकार विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए इस तरह की नीतियों पर विचार कर रही है, लेकिन भारतीय ऑटोमेकर्स का कहना है कि यह घरेलू कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है।
चीन का उदाहरण: सबक और संभावनाएं
चीन ने टेस्ला की उपस्थिति का लाभ उठाकर अपनी घरेलू ईवी इंडस्ट्री को मजबूत किया। टेस्ला के स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता ने चीन के ईवी सप्लाई चेन को मजबूत किया, जिसमें बैटरी तकनीक और अन्य महत्वपूर्ण घटक शामिल हैं। भारत भी इसी तरह टेस्ला के निवेश से तकनीकी हस्तांतरण और बढ़ी हुई प्रतिस्पर्धा के जरिए लाभ उठा सकता है। यदि भारत अपने विशाल उपभोक्ता बाजार को व्यापारिक सौदेबाजी के लिए इस्तेमाल करे, तो टाटा मोटर्स, महिंद्रा और जेएसडब्ल्यू जैसे खिलाड़ियों को भी इसे स्वीकार करना होगा।
निष्कर्ष
सज्जन जिंदल का मानना है कि टेस्ला को भारत में घरेलू ऑटोमेकर्स से कड़ी टक्कर मिलेगी, लेकिन वे यह भी स्वीकार करते हैं कि एक मजबूत प्रतिस्पर्धी का आगमन भारतीय उद्योग के लिए फायदेमंद हो सकता है। टेस्ला का भारत में प्रवेश न केवल ईवी बाजार को बल्कि व्यापक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। यह देखना बाकी है कि क्या टेस्ला भारत में “कैटफिश प्रभाव” पैदा कर पाएगी या जिंदल का संदेह सही साबित होगा। इस बीच, भारतीय ऑटो उद्योग और सरकार दोनों को इस अवसर का अधिकतम लाभ उठाने के लिए तैयार रहना होगा।