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क्या मध्यप्रदेश में भाजपा का भ्रष्टाचार और कर्ज भीख नहीं है?

जीतू पटवारी

मध्य प्रदेश भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल का कहना है कि “अब तो सरकार से भीख मांगने की आदत लोगों को पड़ गई है।” यह बयान सिर्फ अहंकार से भरा नहीं है, बल्कि प्रदेश की जनता का सीधा अपमान भी है। जब जनता अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है, जब किसान, महिलाएँ, युवा और कर्मचारी अपने हक की माँग करते हैं, तो भाजपा उन्हें “भिखारी” कहकर अपमानित करती है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भाजपा खुद कर्ज लेती है, जब भाजपा सरकार में घोटाले होते हैं, जब भाजपा के नेता कमीशनखोरी में लिप्त पाए जाते हैं—तो क्या यह भीख नहीं है?

भाजपा का कर्ज लेना भीख नहीं तो क्या है?
भाजपा सरकार जनता को भीख मांगने का ताना देती है, लेकिन खुद राज्य को कर्ज के दलदल में धकेल रही है। मध्य प्रदेश सरकार पर आज लाखों करोड़ रुपये का कर्ज है। हर साल सरकार हजारों करोड़ रुपए का नया कर्ज लेती है, जिससे प्रदेश की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 में मध्य प्रदेश सरकार पर 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था। हर साल सरकार नए-नए कर्ज लेकर विकास का ढोंग करती है, लेकिन इस कर्ज का लाभ जनता तक नहीं पहुँचता। अगर आम जनता अपने अधिकारों की माँग करे, तो वह “भीख” हो जाती है, लेकिन भाजपा सरकार जब बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लेती है, तो वह “विकास” कहलाता है?

भ्रष्टाचार/कमीशनखोरी,
क्या यह भीख नहीं है?
भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। प्रदेश में हर विभाग में कमीशनखोरी और रिश्वतखोरी चरम पर है। सरकार के बड़े-बड़े नेता और अधिकारी जनता के पैसे पर सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं और जब जनता अपने हक की माँग करती है, तो उसे भिखारी कहा जाता है।

पटवारी और शिक्षक भर्ती घोटाला : सरकारी नौकरियों में घूसखोरी की परंपरा भाजपा राज में लगातार बढ़ रही है। बेरोजगार युवा अपनी मेहनत से नौकरी पाने की जगह रिश्वत देकर नौकरी लेने को मजबूर हैं।

ई-टेंडरिंग घोटाला : मध्य प्रदेश में करोड़ों रुपये के ठेकों में गड़बड़ी सामने आई थी, जिसमें भाजपा के बड़े नेताओं की संलिप्तता उजागर हुई थी।

सिंचाई घोटाला : किसानों को पानी देने के नाम पर हजारों करोड़ रुपये की योजनाएँ बनीं, लेकिन हकीकत में किसान प्यासे रह गए और ठेकेदार व नेता मालामाल हो गए।

व्यापमं घोटाला : यह देश का सबसे बड़ा परीक्षा घोटाला था, जिसमें भाजपा के कई नेता और अधिकारी शामिल थे। हजारों छात्रों का भविष्य बर्बाद कर दिया गया, लेकिन असली गुनहगारों को बचाने की कोशिश की गई। अगर भाजपा के नेता भ्रष्टाचार के जरिए जनता के पैसे को लूटते हैं, तो क्या यह भीख नहीं है? जब ठेकेदारों से कमीशन लिया जाता है, तो क्या यह भीख नहीं है?

किसानों/महिलाओं की मांग भीख नहीं, अधिकार है
भाजपा सरकार महिलाओं के लिए बड़ी-बड़ी योजनाओं का ऐलान करती है, लेकिन जब महिलाएँ अपने हक की माँग करती हैं, तो उसे भीख कहा जाता है।

लाड़ली बहना योजना के तहत पहले 1000 रुपये दिए गए, फिर इसे 1250 किया गया, लेकिन चुनाव से पहले 3000 रुपये देने का वादा किया गया था। अब जब महिलाएँ अपने वादे पूरे करने की बात कर रही हैं, तो भाजपा उन्हें “भिखारी” कह रही है।

किसान के लिए गेहूं, धान और सोयाबीन के मूल्य बढ़ाने की बात आती है, तो भाजपा कहती है कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं। लेकिन जब भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए चंदा चाहिए होता है, तो हजारों करोड़ रुपये आसानी से मिल जाते हैं।

जब अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों को सरकार लाखों करोड़ रुपये की छूट देती है, तब यह भीख नहीं होती, लेकिन जब किसान अपनी फसल का उचित मूल्य माँगता है, तो उसे भीख कह दिया जाता है?

जनता की आवाज को दबाने की साजिश
भाजपा सरकार अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए जनता की आवाज को दबाने का प्रयास कर रही है। विपक्ष जब जनता के मुद्दों को उठाता है, तो उसे भी नजरअंदाज किया जाता है। लोकतंत्र में हर नागरिक को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने का हक है। यह अधिकार भीख नहीं, बल्कि संविधान द्वारा दिया गया हक है।

रोजगार की माँग करना भीख नहीं है। भाजपा सरकार 2 करोड़ नौकरियाँ देने का वादा कर सत्ता में आई थी, लेकिन नौकरियाँ तो दूर, बेरोजगारी दर बढ़ती जा रही है।

महिलाओं के लिए 3000 रुपये मांगना भीख नहीं है। भाजपा सरकार ने खुद यह वादा किया था, लेकिन अब जब महिलाएँ इसे याद दिला रही हैं, तो उन्हें अपमानित किया जा रहा है।

किसानों का हक माँगना भीख नहीं है। भाजपा सरकार किसानों को फसल का उचित मूल्य नहीं देती, लेकिन जब वे अपनी मेहनत का दाम माँगते हैं, तो उन्हें भिखारी कह दिया जाता है।

सत्ता के मद में चूर भाजपा सरकार को यह समझना होगा कि जनता की माँगें भीख नहीं, बल्कि उनके अधिकार हैं। जब भाजपा खुद कर्ज लेती है, जब उसके नेता भ्रष्टाचार में लिप्त होते हैं, जब ठेकेदारों से कमीशन लिया जाता है—तो यह भीख क्यों नहीं होती? अगर भाजपा सरकार को जनता के मुद्दों पर जवाब देना पसंद नहीं है, तो उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है।

प्रदेश की जनता को भी अब यह तय करना होगा कि क्या वे ऐसे अहंकारी नेताओं को सत्ता में बनाए रखना चाहती है, जो उनके अधिकारों को भीख समझते हैं? मध्य प्रदेश के बौद्धिक वर्ग और जागरूक जनता से उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले चुनाव में जनता इस अपमान का जवाब देगी और भाजपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाएगी। क्योंकि, “जनता भिखारी नहीं है, भाजपा अहंकारी है!”

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