डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर की जयंति पर देश को डॉ अंबेडकर के योगदान को याद करना चाहिए,
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस दिन का फायदा उठा कर डॉ. अंबेडकर के नाम से हिंदू धर्म
को निशाना बनाते हैं। ये सही है कि डॉ. अंबेडकर ने अपने पूरे जीवन में हिंदू धर्म की कुरुतियों
के खिलाफ ज़बरदस्त संघर्ष किया और सामाजिक न्याय के लिए आवाज़ उठाई। लेकिन फिर भी
ये पूरा सच नहीं है। डॉ. अंबेडकर की विचारधारा का एक दूसरा पहलू भी है। लेकिन अफसोस की
बात है बाबासाहेब के नाम पर हिंदू धर्म को कोसने वाले कभी उनकी विचारधारा का दूसरा पक्ष
आपको नहीं बताते हैं। वो आपको कभी ये नहीं बताएंगे कि डॉ. अंबेडकर ने इस्लाम धर्म और
उसे मानने वाले मुसलमानों के बारे में क्या कहा था। डॉ. अंबेडकर ने अपने पूरे जीवन में कई
बार इस्लाम के बारे में काफी कठोर विचार प्रस्तुत किये थे। बाबासाहेब ने साफतौर पर कहा था
कि मुसलमान देशभक्त नहीं होते हैं। डॉ. अंबेडकर ने बंटवारे के वक्त कहा था कि भारत के सारे
मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा था कि दलितों को ये नहीं
सोचना चाहिए कि मुसलमान उनके दोस्त होते हैं। इतना ही नहीं बाबासाहेब ने इस्लाम धर्म में
मौजूद छुआछूत और जातपात को बेनकाब किया और ये भी बताया था कि वो खुद कैसे
मुसलमानों के हाथों छूआछूत के शिकार हुए थे। तो आइये जानते हैं इस्लाम पर डॉ. अंबेडकर के
10 क्रांतिकारी विचारों को।
- “मुसलमान देशभक्त नहीं होते हैं”
बाबासाहेब का मुसलमानों के बारे में पहला विचार ये था कि मुसलमान देशभक्त नहीं होते हैं।
जी हां डॉ अंबेडकर ने साफ साफ कहा था कि मुसलमान भारत को अपनी मातृभूमि नहीं मानते
हैं। और ये बात उन्होने लिखी है Pakistan or the Partition of India। जिसका हिंदी अनुवाद
“पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” के नाम से प्रकाशित हुआ था। इस किताब के पेज नंबर
332 पर डॉ. अंबेडकर लिखते हैं कि –
“इस्लाम एक बंद खि़ड़की की तरह है जो मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच भेद करता है।
इस्लाम में जिस भाईचारे की बात की गई है वो मानवता का भाईचारा नहीं है बल्कि उसका
मतलब सिर्फ मुसलमानों का मुसलमानों से भाईचारा है। मुसलमानों के भाईचारे का फायदा सिर्फ
उनके अपने लोगों को ही मिलता है और जो गैर मुस्लिम हैं उनके लिए इस्लाम में सिर्फ घृणा
और शत्रुता ही है। मुसलमानों की वफादारी उस देश के लिए नहीं होती जिसमें वो रहते हैं। बल्कि
उनकी वफादारी अपने धर्म के लिए होती है जिसका कि वो पालन करते हैं।”
- “सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए”
तो आइए अब आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं इस्लाम पर डॉक्टर अंबेडकर के दूसरे विचार की
जिसमें उन्होने कहा था कि भारत के सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। दरअसल
जब पाकिस्तान की मांग उठी थी तो बाबासाहेब का मानना था कि अंगर बंटवारा होता है तो
भारतीय इलाकों के सारे मुसलमानों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए। और इसके लिए उन्होने
1923 में हुए टर्की और ग्रीस के बीच एक समझौते का उदाहरण दिया था जिसके तहत ग्रीस में
रहने वाले सारे मुसलमान टर्की भेज दिये गये थे और और टर्की में रहने वाले सारे ईसाई ग्रीस
चले गये थे। अंबेडकर इसी को आधार बनाकर अपनी किताब के पेज नंबर 123 पर लिखा था
कि –
“जनसंख्या के तबादले का मज़ाक उड़ाने वालों को इन देशों (टर्की और ग्रीस) की अल्पसंख्यकों
की समस्या का अध्यन करना चाहिए ताकि वो जान पायें कि अल्पसंख्यकों से जुड़ी समस्या का
एकमात्र हल जनसंख्या की अदला-बदली ही है। साम्प्रदायिक शांति स्थापित करने का टिकाऊ
तरीका अल्पसंख्यकों की अदला-बदली ही है। ये व्यर्थ होगा कि हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे
को संरक्षण देने के ऐसे उपाय खोजने में लगे रहें जो इतने असुरक्षित पाए गए हैं। यदि ग्रीस,
टर्की और बुल्गारिया जैसे सीमित साधनों वाले छोटे-छोटे देश भी यह काम पूरा कर चुके हैं तो
ये मानने का कोई कारण नहीं है कि हिन्दुस्तानी ऐसा नहीं कर सकते।”
यानि डा अंबेडकर का ये मानना था कि विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान के बीच पूरी
तरह से हिंदु और मुस्लिम आबादी की अदला-बदली होना चाहिए। लेकिन पाकिस्तान ने तो
करीब करीब सारे हिंदू भारत भेज दिये लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति की वजह से भारत
ने ऐसा नहीं किया। और इसका क्या अंजाम होगा इस पर भी डॉ अंबेडकर ने अपनी बात रखी
थी। - “मुसलमान भारत में रहेंगे तो कभी सांप्रदायिक शांति नहीं होगी”
इस्लाम पर डॉ अंबेडकर के तीसरे विचार के मुताबिक मुसलमान भारत में रहेंगे तो कभी
सांप्रदायिक शांति नहीं होगी । अंबेडकर की इस सोच का सबूत है उनकी किताब। इसके पेज
नंबर 125 पर वो लिखते हैं कि –
“ये बात स्वीकार कर लेना चाहिए कि पाकिस्तान बनने के बाद भी हिंदुस्तान सांप्रदायिक
समस्या से मुक्त नहीं हो पाएगा। सीमाओं को बांट देने से पाकिस्तान तो एक मुस्लिम देश बन
जाएगा लेकिन हिंदुस्तान एक मिलीजुली आबादी का ही देश बना रहेगा। मुसलमान पूरे हिंदुस्तान
में बिखरे हुए हैं। इसलिए किसी भी तरह की सीमाएं बनाने से हिंदुस्तान एक ही धर्म का देश
नहीं बन पाएगा। हिंदुस्तान को एक ही धर्म का देश बनाने का एकमात्र तरीका यही है कि
जनसंख्या की अदला-बदली की जाए। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, हिंदुस्तान में बहुसंख्यक
यानि हिंदू और अल्पसंख्यक यानि मुस्लिमों के बीच समस्या बनी रहेगी।” - “मुसलमान भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ सकते हैं”
अब मैं आपको इस्लाम और भारतीय मुसलमानों पर डॉ अंबेडकर का जो चौथा विचार बताने जा
रहा हूं उसे सुनकर आप चौंक जाएंगे। इस्लाम पर बाबासाहेब का चौथा विचार ये था कि
मुसलमान भारत के खिलाफ जेहाद छेड़ सकते हैं। बाबासाहेब के मुताबिक भारत के मुसलमान
भारत को दार-उल-हर्ब मानते है यानि जहां उनका शासन नहीं है। इसीलिए अंबेडकर को लगता
था कि भारत को दार-उल-इस्लाम यानि वो देश जहां इस्लाम की हुकूमत होती है बनाने के लिए
मुसलमान जेहाद की घोषणा कर सकते हैं। अपनी किताब के पेज नंबर 297 पर अंबेडकर लिखते
हैं कि –
“तथ्य यह है कि भारत, चाहे एक मात्र मुस्लिम शासन के अधीन न हो, दार-उल-हर्ब (यानि जहां
इस्लाम का शासन नहीं है) है। और इस्लामी सिद्धान्तों के अनुसार मुसलमानों द्वारा जेहाद की
घोषणा करना न्यायसंगत है। वे जिहाद की घोषणा ही नहीं कर सकते, बल्कि उसकी कामयाबी
के लिए विदेशी मुस्लिम शक्ति यानि किसी मुस्लिम देश की मदद भी ले सकते हैं, और यदि
कोई मुस्लिम देश जेहाद की घोषणा करना चाहता है तो उसकी सफलता के लिए भारत के - मुसलमान उसे मदद भी दे सकते हैं।”
- “मुसलमान कभी भी हिंदुओं की सरकार को स्वीकार नहीं करेंगे”
इस्लाम पर डॉ अंबेडकर का पांचवां विचार ये था कि मुसलमान कभी भी हिंदुओं की सरकार को
स्वीकार नहीं करेंगे। बाबासाहेब की ये बात आज काफी हद तक सच नज़र भी आ रही है।
दरअसल मुस्लिम समाज मोदी की सरकार को इस देश की सरकार नहीं बल्कि हिंदुओं की
सरकार समझता है। यानि आज की इस मुस्लिम सोच को डॉक्टर अंबेडकर बहुत पहले पहचान
गये थे। उन्होने अपनी किताब के पेज नंबर 303 पर लिखा था कि –
“हिंदुओं से नियंत्रित और शासित सरकार की सत्ता मुसलमानों को किस सीमा तक स्वीकार होगी
इसके लिए ज्यादा माथापच्ची करने की ज़रूरत नहीं है। मुसलमानों के लिए हिंदू काफिर हैं और
उनकी कोई समाजिक स्थिति यानि हैसियत नहीं होती है। इसलिए जिस देश में काफिरों का
शासन हो, वो देश मुसलमानों के लिए दारुल हर्ब है। ऐसी स्थिति में ये साबित करने के लिए
सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमानों के अंदर हिंदू सरकार के शासन को स्वीकार
करने की इच्छा शक्ति मौजूद ही नहीं है। अंबेडकर आगे लिखते हैं कि जब खिलाफत आंदोलन
के दौरान मुसलमानों की मदद के लिए हिंदू काफी कुछ कर रहे थे तब भी मुसलमान ये नहीं
भूले कि उनकी तुलना में हिंदू निम्न और घटिया कौम है।” - “शरिया कानून देश के कानून से ऊपर”
आइए अब आपको मैं बताता हूं इस्लाम पर डॉ. अंब़़ेडकर का छठा विचार जिसमें उन्होने कहा था
कि मुसलमान शरिया के कानून को देश के कानून से उपर मानते हैं। बाबासाहेब की ये बात
आज भी कई मौकों पर सही साबित हो जाती है। उन्होने अपनी किताब के पेज नंबर 294 पर
लिखा था कि –
“इस्लाम ये कहता है कि अगर किसी गैर मुस्लिम देश में मुसलमानों के कानून यानि शरिया
और उस देश के कानून के बीच विवाद पैदा हो जाए तो इ्स्लामिक कानून को ऊपर यानि सही
माना जाए। इस तरह मुसलमानों के लिए ये सही माना जाएगा कि वो मुस्लिम कानून का पालन
करें और उस देश के कानून को न मानें।”
- “जब बाबासाहेब हुए मुस्लिम छुआछूत के शिकार”
अगर आपको लगता है कि डॉ अंबेडकर ने सिर्फ हिंदू वर्ण व्यवस्था, छूआछूत और जातिगत
भेदभाव के खिलाफ ही बोला या लिखा था तो फिर आपको सिर्फ अधूरी जानकारी दी गई है। डॉ
अंबेडकर ने भारतीय मुसलमानों के अंदर मौजूद जातिव्यवस्था, भेदभाव और छुआछूत के खिलाफ
भी अपने विचार रखे थे। आपको अब तक डॉक्टर अंबेडकर के बारे में ये बार-बार बताया गया
होगा कि कैसे उन्हे बचपन में बैलगाड़ी से उतार दिया गया था, कैसे उन्हे स्कूल में अलग से
पानी पीना पड़ता था, कैसे नाई ने उनके बाल काटने से मना कर दिया था और कैसे बड़ौदा में
रहने के लिए उन्हे घर नहीं मिला था। लेकिन कभी आपको किसी ने ये नहीं बताया होगा कि
कैसे मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने भी डॉ अंबेडकर के साथ साथ छूआछूत और भेदभाव का
बर्ताव किया था। तो आइए जानते हैं इसी से जुड़े इस्लाम पर डॉ अंबेडकर के सातवें विचार को।
जब खुद उनके साथ मुसलमानों ने छुआछूत का व्यवहार किया था। ये बात खुद डॉक्टर अंबेडकर
ने अपनी लघु किताब वेटिंग फॉर ए वीज़ा में लिखी है। इस किताब को बकायदा अमेरिका की
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में कोर्स में पढाया जाता है। अंबेडकर ने इस किताब के चौथे अध्याय में
1934 की अपनी दौलताबाद यात्रा का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि –
“वो रमजान का महीना था। हमने दौलताबाद किले के बाहर बने तालाब में हाथ-मुंह धोये ही थे
कि एक बूढ़ा मुसलमान चिल्लाते हुए बोला “तुम अछूतों ने तालाब का पानी गंदा कर दिया”।
थोड़ी ही देर में कई मुसलमान जमा हो गये और हमें गालियां देने लगे कि “तुम अछुतों का
दिमाग खराब हो गया है, तुम्हारी औकात क्या है, तुम्हे सबक सीखाने की ज़रूरत है”। हमने
समझाने की कोशिश की लेकिन मुसलमान हमारी बात सुनने को तैयार नहीं थे। वो हमें इतनी
गंदी-गंदी गालियां दे रहे थे कि हम भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। वहां दंगे जैसे हालात बन
गए थे और हत्या भी हो सकती थी। तब मेरा धैर्य खत्म हो गया। मैंने थोड़े गुस्से में पूछा “क्या
तुमको तुम्हारा धर्म यही सिखाता है? क्या तुम ऐसे किसी अछूत को पानी लेने से रोकोगे जो
मुसलमान बन जाए?”। ये सुनकर वो चुप हो गये। इस किस्से से साफ होता है कि कैसे एक
“अछूत हिंदू” मुसलमान के लिए भी “अछूत” होता है।”
- “मुसलमानों को अपना दोस्त न मानें दलित”
अक्सर कुछ लोग जय भीम और जय मीम के नारे लगाते हैं। दरअसल ये नारा आज भारतीय
राजनीति में एक फैशन बन गया है। लेकिन मुस्लिम-दलित एकता पर डॉ अंबेडकर क्या सोचते
थे ये कोई आपको नहीं बताता है क्योंकि ये बताने पर जय भीम-जय मीम का नारा खोखला
साबित हो जाएगा। तो आइए बात करते हैं इसी नारे से जुड़े डॉ अंबेडकर के इस्लाम पर विचार
नंबर आठ की। जिसमें बाबासाहेब ने कहा था कि मुसलमानों को अपना दोस्त न मानें दलित ।
1947 में बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान के साथ साथ हैदराबाद के निजाम के रजाकारों ने भी
दलितों पर अत्याचार किया तो डॉक्टर अंबेडकर ने 27 नवंबर 1947 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो
कहा था वो छपा है एक किताब में जिसका नाम है डॉक्टर अंबेडकर जीवचरित में। और इस
किताब को लिखा है महान लेखक पद्मभूषण से सम्मानित धनंजय कीर ने। इस किताब के पेज
नंबर तीन सौ उन्यासी के मुताबिक डॉ अंबेडकर ने कहा था कि –
“पाकिस्तान के चक्कर में फंसा दलित समाज हर उपलब्ध मार्ग और साधन से भारत आ जाए।
मैं कहना चाहता हूं कि पाकिस्तान और हैदराबाद रियासत के मुसलमानों पर भरोसा करने से
दलित समाज का विनाश होगा। दलित वर्ग हिंदू समाज से नफरत करता है, इसीलिए मुसलमान
हमारे मित्र हैं ये मानने की बुरी आदत दलितों को लग गई है, जो अत्यंत गलत है। मुसलमान
तो अपने लिये दलितों का साथ चाहते हैं लेकिन बदले में वो कभी दलितों का साथ नहीं देते हैं।” - बुर्के पर बाबासाहेब के विचार
इस्लाम पर नौवे विचार के मुताबिक डॉ अंबेडकर का मानना था कि बुर्के की वजह से मुस्लिम
नौजवान यौन विकृति यानि सैक्सुअल डिसआर्डर के शिकार बन जाते हैं। दरअसल देश के हर
समाज की हर महिला की आज़ादी के पक्षधर बाबासाहेब का मानना था कि बुर्के का असर सिर्फ
महिलाओं पर ही नहीं पड़ता बल्कि इसका गलत असर पुरुषों की मानसिकता पर भी पड़ता है।
वो अपनी किताब के पेज नंबर 231 पर जो लिखते हैं वो बेहद आंखे खोल देने वाला है। वो
लिखते हैं कि –
“पर्दा प्रथा ने मुस्लिम पुरुषों की नैतिकता पर बुरा प्रभाव डाला है। पर्दा प्रथा के कारण कोई
मुसलमान अपने घर-परिवार से बाहर की महिलाओं से कोई परिचय नहीं कर पाता। घऱ की
महिलाओं से भी उसका संपर्क यदा-कदा बातचीत तक ही सीमित रहता है। महिलाओं से पुरुषों
की ये पृथकता निश्चित रूप से पुरुष के नैतिक बल पर विकृत प्रभाव डालती है। ये कहने के
लिए किसी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की आवश्यकता नहीं कि ऐसी सामाजिक प्रणाली से जो पुरुषो
और महिलाओं के बीच के संपर्क को काट दें उससे यौनाचार (Sexual activity) के लिए ऐसी
अस्वस्थ प्रवृत्ति पैदा होती है, जो आप्राकृतिक, गंदी आदतों और अन्य साधनों को अपनाने के
लिए प्रेरित करती है। ऐसा नहीं है कि पर्दाप्रथा हिंदुओं में नहीं है, लेकिन इस्लाम में पर्दाप्रथा को
धार्मिक मान्यता मिली हुई है जबकि हिंदुओं में ऐसा नहीं है। हिंदुओं की तुलना मे मुसलमानों में
पर्दाप्रथा की जड़े काफी गहरी हैं।”
- “मुसलमान समाज सुधार के विरोधी होते हैं”
इसमें कोई शक नहीं कि भारत के हर समाज में चाहे वो हिंदू हों या मुसलमान दोनों में
सामाजिक बुराई मौजूद है। लेकिन इस्लाम पर बाबासाहेब के दसवे विचार के मुताबिक डॉ
अंबेडकर का ये मानना था कि मुसलमानों ने अपने सामाजिक सुधार के लिए कोई आंदोलन नहीं
किया और वो समाज सुधार के प्रबल विरोधी होते हैं। उन्होने हिंदुओं की इस बात की तारीफ की
थी कि वो कम से कम अपनी सामाजिक बुराई को स्वीकार तो करते हैं लेकिन मुसलमान अपने
समाज के अंदर मौजूद बुराई को कभी स्वीकार नहीं करते। उन्होने अपनी किताब के पेज नंबर
233 और 234 पर लिखा है कि –
“मुसलमानों ने समाज में मौजूद बुराईयों के खिलाफ कभी कोई आंदोलन नहीं किया, हिंदुओ में
भी सामाजिक बुराईयां मौजूद हैं, लेकिन अच्छी बात ये है कि वो अपनी इस गलती को मानते हैं
और उसके खिलाफ आंदोलन भी चला रहे हैं। लेकिन मुसलमान तो ये मानते ही नहीं हैं कि
उनके समाज में कोई बुराई है। दरअसल मुसलमान समाज सुधार के प्रबल विरोधी हैं। मुसलमानों
के ये सिखाया जाता है कि इस्लाम के अलावा कहीं सुरक्षा नहीं है और इस्लामी कानून से सच्चा
कोई कानून नहीं है। इसी वजह से मुसलमान खुद के अलावा कुछ और सोच पाने के काबिल
नहीं बचे हैं। उन्हे इस्लामी विचार के अलावा कोई और विचार पसंद ही नहीं आता है। मुसलमानों
के जेहन में ये गहराई से बैठा हुआ है कि सिर्फ वो ही सच्चे हैं और सिर्फ वो ही वि्दवान हैं।”
वैसे तो बाबासाहेब ने इस्लाम के विषय पर इतना कहा है कि उसे एक लेख में समेट पाना
कठिन है। लेकिन फिर भी हमने डॉ अंबेडकर के ये 10 विचार इसलिए बताए कि क्योंकि इस
देश के लिबरल, वामियों और जेहादी सोच के लोगों ने डॉक्टर भीमराव बाबा साहेब अंबेडकर के
विचारों का अपहऱण कर लिया है। या आप यू भी कह सकते हैं कि इन लोगों ने डॉ अंबेडकर के
विचारों को कैद कर लिया है। डॉ अंबेडकर के विचारों को अपनी बपौती मानने वाले ये
तथाकथित बुद्धिजीवी दरअसल एक तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। ये जानबूझकर डॉ अंबेडकर को
एक वर्ग विशेष का नेता और एक वर्ग विशेष का दुश्मन बना कर ही पेश करना चाहते हैं।
लेकिन अब वक्त आ गया है कि हम डॉक्टर भीमराव बाबा साहेब अंबेडकर के विचारों को सही
रुप में सबके सामने लाएं।
प्रखर श्रीवास्तव
वरिष्ठ टीवी पत्रकार
