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भारत का चंद्रयान-3: नये युग का सूत्रपात

चंद्रयान-3 की सफलता ने निःसंदेह समूचे भारत में अभूतपूर्व जागृति, उत्साह एवं रोमांच का
संचार किया है। इस सफ़लता ने रातों-रात पश्चिमी मीडिया के स्वर बदल दिये । इसरो की इस सफ़लता
के शिल्पी इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ, उनकी समस्त टीम एवं अन्य सहयोगी तो हैं ही किंतु
इस सफ़लता के भागीदार, इसरो के समस्त शिल्प-रत्निन के साथ-साथ उनके उल्लास को अपने स्वर से
समुल्लास में बदल देने वाले, भारत के कोने-कोने में रहने वाले युवक और किशोर भी हैं, जिन्होने
23 अगस्त 2023 की संध्या 6 बजकर 04 मिनट पर दर्ज की गई इसरो की सफ़लता को एक
राष्ट्रीय उत्सव में परिणित कर दिया था ।
चंद्रयान-3 की सफलता चंद्र-अभियानों के इतिहास में अद्वितीय स्थान रखती है। चंद्रमा के जिस
दक्षिणी ध्रुव को पृथ्वी से देखा नहीं जा सकता है, उस दक्षिणी ध्रुव से सटे हुये दो गहरे भूगर्त
(क्रेटर्स) के मध्य संकरी समतल भूमि के छोटे से 2.5×4.0 किमी के टुकड़े को केवल गणनाओं के
आधार पर चिह्नित कर, वहां विक्रम लैंडर की त्रुटिहीन साफ़्ट लैंडिंग संपन्न करा कर इसरो ने
चंद्र-अभियानों के इतिहास में नया अध्याय लिख दिया है, जिसके साक्षी करोडों भारतीय एवं
विदेशी नागरिक रहे।
चंद्रयान-3 की सफ़लता के पीछे स्वदेशी ‘एआई’ की शक्ति
चंद्रयान-3 की सफ़लता भारत की एआई (आर्टिफ़ीशियल इंटेलिजेंस) इंजीनियरिंग की भी सफ़लता
है। बिना एआई इस तरह की त्रुटिहीन सटीक लैंडिंग करना शायद संभव नहीं हो पाता। चंद्रमा
की पृथ्वी से दूरी 3.84 लाख किमी की है, जिन रेडियो तरंगो द्वारा चंद्रयान-3 को नियंत्रित किया
जाता है उनके सिग्नल इतनी दूर पहुंच कर एवं वापस आने में लगभग 2.6 सेकंड्स का समय
लग जाता है, इतने समय में चंद्रयान की पहले की चिन्हित स्थिति में कई किमी का अंतर आ जाता है।

अतः चिन्हित स्थान बदल जाने के कारण, नीचे उतर रहे किसी भी चंद्रयान को दक्षता के साथ
नियंत्रित करना संभव नहीं हो पाता है, तथा लैंडिंग के दौरान लगभग आधे अंतरिक्ष यान दुर्घटना
का शिकार हो जाते हैं। जिससे बचने के लिये इसरो ने इस बार आर्ट्फ़ीसियल इंटेलिजेंस (एआई)
का सहारा लिया।
इसरो ने बताया है कि इस बार लैंडर विक्रम में एआई द्वारा नियंत्रित लेजर अल्टीमीटर (LASA)
और रफ़्तार नापने के लिये लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर (LDV) का उपयोग किया गया है, जिससे
लैंडिंग के दौरान विक्रम लैंडर स्वयं अपनी दिशा एवं रफ़्तार को चेक कर सकता है तथा जरूरत के
हिसाब से समायोजित भी कर सकता है। पृथ्वी से किसी प्रकार के निर्देश भेजने की जरूरत नहीं
है।
एक नजर इसरो की उपलब्धियों पर
सन् 1975 में स्वदेशी उपग्रह (satelite) आर्यभट्ट का निर्माण करने के बाद से इसरो ने कभी पीछे मुड़ कर
नहीं देखा ।
१) स्वदेशी जीपीएस नेविगेशन सिस्टम नाविक ( NavIC ): नाविक में 07 उपग्रह मिलकर काम करते हैं।
नाविक भारत की सीमाओं के चारों ओर 1500 किमी के दायेरे में पैनी नजर रखता है तथा सेना को आधे
मीटर की दूरी तक की सटीक जानकारी देता है।
२) स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजिन: पिछली सदी के नब्बे के दसक में अमेरिका द्वारा रूष के सहयोग से होने
वाले क्रायोजेनिक इंजिन की तकनीक पर प्रतिबंध लगा लेने के बाद, इसरो ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजिन
बना लिया, चंद्रयान-3 स्वदेशी क्रायोजेनिक पर ही चंद्रमा तक की छलांग लगाई है।
३) गगन नेवीगेशन: जिसके द्वारा इसरो भारत एवं पडोसी देशो को हवाई जहाज एवं रेलगाडियो के रूट
एवं खराब मौसम की सूचना प्रदान करता है । इसके साथ ही इसरो जमीन होने वाले भूस्खलन, जंगल में
लगी आग, नदियों में आई बाढ़ एवं समुद्र में उठने वाले तूफ़ान जैसी आपदाओं पर भी नजर रखता है।

सतीश धवन, विक्रम साराभाई एवं एपीजे अब्दुल कलाम

तिरंगा और शिव-शक्ति: प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता
चंद्रयान-3 की सफलता ने भारत को “नेशनल स्पेस डे” प्रदान किया जिसके द्वारा चंद्रयान-3 की
विरासत को हमेशा याद रखा जायेगा तथा प्रति वर्ष, हमेशा हमेशा 23 अगस्त के दिन होने वाले
समारोह नई प्रेरणा, एवं उत्साह प्रदान करते रहेंगे । प्रधानमंत्री मोदी दो अन्य ऐलान भी इस
अवसर पर किय जो इस प्रकार हैं – जिस बिंदु पर चंद्रयान का विक्रम लैंडर उतरा उसे उन्होने
‘शिव-शक्ति’ का नाम तथा जिस बिंदु पर पिछले चंद्रयान का लैंडर टकराकर नष्ट हो गया था, उस
बिंदु को उन्होने ‘तिरंगा’ नाम दिया ।
चंद्रयान-3 से संबंधित महत्वपूर्ण नामकरण हिंदी में किये जाने का दूसरा लाभ होगा कि हिंदी की
वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ेगी, ग्रीक एवं लैटिन भाषा में वैज्ञानिक उपलब्धियों के नाम रखे जाने के
कारण ही इन भाषाओ को विज्ञान की भाषा समझा जाने लगा है वरना वैज्ञानिकता में ये दोनों
भाषायें हिंदी एवं संस्कृत से बहुत पीछे हैं।
स्वाधीन भारत के इतिहास में पहली बार किसी ऐसी ‘ Crash Site’ को विरासत का अंग
इसलिये बनाया गया ताकि आगे आने वाली पीढ़ियां ‘असफ़लता को सफ़लता’ में बदलने का मंत्र
सीख सकें । यह क्षण असाधारण है, जिसमें भारत की सोच में आने वाले सकारात्मक परिवर्तन का संकेत
छिपा हुआ है । तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज है, यदि राष्ट्रीय ध्वज ही ‘असफ़लता को सफ़लता’ में
बदलने का माध्यम बना दिया जाये एवं उस संदेश को प्रज्वलित रखा जाये तो फ़िर ऐसे भारत को
आगे बढने से न कभी रोका जा सकता है और न ही कभी उसका हौसला पस्त किया जा सकता
है। इन तीनों प्रतीकों के लिये प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता को याद रखा जायेगा ।
चंद्रयान-3 के अनेक कारनामों में से दुनिया भर को चकित करने वाला एक कारनामा रहा चंद्रयान-
2 के चार साल पुराने आर्बिटर से पुनः संपर्क स्थापित कर बिलकुल नये आर्बिटर की तरह उसका
इस्तेमाल करने में सफ़ल होना । यह संपर्क 21 अगस्त के दिन स्थापित किया गया था । इसरो की
टीम ने इस प्रकार एक और आर्बिटर निर्मित करने का खर्च बचा लिया गया तथा दुनिया को दिखा
दिया गया कि भारतीय टेक्नालाजी कितनी भरोसेमंद, टिकाऊ एवं भविष्योन्मुख है ।

चांद की डगर बड़ी कठिन
लगभग पचास वर्षो के ठहराव के पस्चात् पुनः एक बार अंतरिक्ष की गहराईयों को नापने की कड़ी
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा शुरू हो चुकी है। प्रत्येक साधन-संपन्न देश अंतरिक्ष मे अपना अपना प्रभुत्व
स्थापित करना चाहता है। वर्ष 2023-24 के दौरान भारत के अतिरिक्त अन्य पांच देशों के चंद्र-
अभियान घोषित किये गये थे, जिनमें से जापान, रूष एवं भारत के अभियान हो चुके हैं जबकि
चीन, यूरोपियन यूनियन ( ईयू ) एवं अमेरिका के अभियान अगले वर्ष 2024 में किये जाने हैं ।
चंद्रमा पर किसी भी अंतरिक्ष यान को उतार पाना कभी भी आसान नहीं रहा।
यूएस को भी पहली सफ़लता के लिये लगातार पंद्रह मिशनों की असफ़लता का सामना करना पडा
था, जबकि इजराइल एवं जापान अब तक कोई भी सफ़लता हाशिल नहीं कर सके हैं। रूष
हालांकि दुनिया में सबसे पहले सन् 1966 में चंद्रमा पर साफ़्ट लैंडिंग कर चुका है, तो भी वह इस
बार असफ़ल रहा इसलिये भारत के चंद्रयान-3 की सफलता और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती
है। जिन देशों के चंद्र-अभियान अधिक सफ़ल रहे हैं उनमे भारत के अलावा चीन भी शामिल है।
सोशल मीडिया में पूछा गया “विशेष क्या है”?
चूंकि इसरो ने लैंडिंग की पूरी प्रक्रिया का सीधा प्रसारण किया, इसलिये इस बार 2016 की
सर्जिकल स्ट्राइक पर जैसे संदेहास्पद सवाल सवाल लेफ़्ट-लिबरल्स द्वारा उठाये गये थे, वैसे सवाल
नहीं उठाये गये किंतु लेफ़्ट-लिबरल्स इस बार भी सोशल मीडिया में चंद्रयान-3 को कमतर साबित
करने की पुरजोर कोशिश की गयी। लेफ़्ट-लिबरल्स ने जैसे कुतर्क रखे उससे लगता है कि उन्होने
चंद्रयान-3 की यात्रा को एक अदद टैक्सी हायर करने से ज्यादा नहीं समझा, ऐसे ऐसे तर्क दिये जैसे
कोई कहे कि ओलंपिक का गोल्ड मेडल जीतने से आपके जीवन में क्या बदलाव आता है। उन्होने स्पष्ट कर
दिया कि उन्हे चंद्रयान-3 का औचित्य समझ नहीं आ पाया ।
इस बार लैंडर का काम केवल लैंड करना भर नही है बल्कि लैंडर चंद्रमा की सतह पर तापमान में होने वाले
परिवर्तन का अध्ययन चास्ट (ChaSTE) सिस्टम द्वारा तथा लैंडिंग स्थल के आसपास की सीस्मिक
गतिविधियो का अध्ययन (ILSA) सिस्टम द्वारा करेगा । प्रज्ञान रोवर भी लैंडिंग स्थल के आसपास की
मिट्टी में मैग्नीशियम, एलूमिनियम, सिलिका, पोटैशियम, टाइटेनियम तथा आयरन जैसे खनिज पदार्थों का
पता लगायेगा जिसके लिये अहमदाबाद की लैब में बनाई गई APXS एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर का उपयोग
किया जा रहा है ।
लैंडिग का प्रथम चरण: डिबूस्टिंग, रफ़ ब्रेकिंग एवं पावर्ड डिसेंट

इसरो के अनुसार, चंद्रयान-3 को डिबूस्टिंग के दो चरणों से गुजरना पड़ा । पहली डिबूस्टिंग 18
अगस्त तथा दूसरी एवं अंतिम डिबूस्टिंग 20 अगस्त को संपन्न हुई। डिबूस्टिंग के दौरान लैंडर की
स्थिति चंद्रमा की अंडाकार कक्षा के दो बिंदुओं के बीच निश्चित कर दी जाती है। इन दो बिंदुओं
में से एक बिंदु सतह के सर्वाधिक समीप (perilune) तथा दूसरा बिंदु सर्वाधिक दूरस्थ
(Apolune) होता है, दोनों स्थितियों को चित्र में देखा जा सकता है। इसके बाद लैंडर इन दोनों
निश्चित बिंदुओं के बीच ही चंद्रमा का चक्कर लगाता है । इस निश्चितता के कारण स्पेस
साइंटिस्ट्स एवं इंजीनियर्स को लैंडिंग करने हेतु आवश्यक गणनाओं में आसानी होती है ।

डीबूस्टिंग के परिणामस्वरूप विक्रम लैंडर चंद्रमा की सतह के काफ़ी नजदीक 25×134 किमी की
निश्चित कक्षा में आकर स्थापित हो गया जिसे इसरो द्वारा जारी किये गये इस चित्र में देखा जा
सकता है।

इस स्थिति में विक्रम लैंडर की रफ़्तार 1.68 किमी प्रति सेकंड की थी जो घंटे/किमी में बदलने पर
लगभग 6048 किमी प्रति घंटे के बराबर आती है। यह रफ़्तार हवाई जहाज की औसत रफ़्तार से
लगभग दस गुना अधिक है। इस पर यदि यदि ब्रेक न लगाया जाये तो जैसे रूष का लूना-25 सीधे
सतह पर आ गिरा, चंद्रयान-3 भी वैसे ही गिरता और चकनाचूर हो जाता। जिससे बचने के लिये
एक ही तरीका था कि नीचे आ रहे लैंडर की रफ़्तार पर किसी तरह ब्रेक लगाया जाये जिसके
लिये रेट्रो अर्थात उल्टी दिशा में ऊपर की ओर बल विक्षोभ लगाया जाये जो नीचे खींचने वाले
गुरुत्वाकर्षण बल को बैलेंस कर सके, इस स्थिति को ‘पावर्ड डिसेंट’ कहते हैं ।
‘पावर्ड डिसेंट’ जिस क्षण शुरू हुआ उस क्षण लैंडर विक्रम चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई
पर था तथा इसकी अंडाकार परिधि लगभग 750 किमी की थी। कहने का अर्थ हुआ कि जैसे
पहाडों से घूमकर रास्ते नीचे उतरते हैं ताकि सीधे टपक न जायें, उसी तरह 30 किमी की ऊंचाई
से धीरे-धीरे 750 किमी की ढलान बनाकर विक्रम लैंडर को अगले चरण के स्तर तक लाया गया ।
चंद्रयान-2 से लिए गये सबक
चंद्रयान-2 की दुर्भाग्यपूर्ण लैंडिंग के दौरान, इंजिन के ओवर परफ़ार्म कर जाने के कारण जरूरत से
ज्यादा आग भभक गयी जिससे बहुत अधिक बल-विक्षोभ उत्पन्न हुआ, तथा लैंडर अपेक्षित
कैलिब्रेटेड स्पिन से कहीं ज्यादा 410 डिग्री घूम गया ।
इसी बीच लैंडर का ईंधन भी खत्म हो गया जिसके कारण लैंडर अंततः किसी अलग दिशा में
चंद्रमा की सतह से टकराकर चकनाचूर हो गया। पिछली तकनीकी त्रुटियों से सबक लेते हुये इस
बार लैंडर में 12 इंजन लगाये गये हैं, रफ़्तार में कमी के लिए चार इंजन और रफ़्तार की दिशा
पर नियंत्रण के लिए आठ इंजिन हैं, इसके अलावा इसमें पर्याप्त मात्रा में ईंधन भरा गया है, जो
इसे चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ देर तक ऊपर बने रहने की क्षमता प्रदान करता है। इसरो
ने बताया है कि इस बार एआई द्वारा पूरी तरह आटोमेटेड लैंडिंग कराई गई है, पृथ्वी से किसी
प्रकार के निर्देश भेजने की जरूरत नहीं पड़ी है ।
लैंडिग का द्वितीय चरण: फ़ाइन ब्रेकिंग एवं लैंडर का ऊर्ध्व समायोजन
चंद्रमा की सतह से 7.42 किलोमीटर की ऊंचाई पर, लैंडर 10 सेकंड के “एटीट्यूड-होल्ड चरण” में
प्रविष्ट हुआ । इस संक्षिप्त अवधि में, लैंडर ने स्वयं को क्षैतिज से ऊर्ध्व दिशा में सीधा करने का
प्रयास शुरू किया। लगभग 175 सेकंड तक चलने वाले, “फाइन-ब्रेकिंग चरण” में लैंडर पूर्णतः
ऊर्ध्वाधर मुद्रा में परिवर्तित हो गया। जिसके पश्चात “टर्मिनल डिसेंट” चरण शुरू किया गया, जिसके
दौरान बिल्कुल सीधे खडी स्थिति में लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतर आया तथा भारत ने चंद्र-अभियानों की
इतिहास की किताब में अपने नाम का नया अध्याय लिख दिया । लैंडर के लैंड करने के दो घंटे के बाद
लैंडर से छः चक्कों वाला मात्र छब्बीस किलो वजन वाला रोवर बाहर निकला जिसने चंद्रमा की
सतह पर अशोक चक्र छाप दिया ।

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