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हिंदुत्व का असली रक्षक कौन?

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सुलग रहा मणिपुर आंच असम-मिजोरम तक

मणिपुर सुलग रहा है। 3 महीने हो गए। 150 से ज्यादा लोग मारे गए। सैकड़ों गांव-घर जला दिए। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच लड़ाई चल रही है। दो देशों के बीच चलने वाली जंग की तरह। सरकार है, पुलिस है, सेना, असम राइफल्स, ITBP और BSF के 35 हजार जवान हैं, लेकिन म्यांमार से सटे सरहदी राज्य में जंग नहीं रुक रही।

मैतेई ST का दर्जा और पहाड़ी जिलों में जमीन खरीदने का अधिकार चाहते हैं। हाई कोर्ट ने सरकार से इस पर विचार करने की सलाह दी थी। इसी के विरोध में ट्राइब कम्युनिटी में शामिल कुकी ने प्रदर्शन किया। यहीं से हिंसा की शुरुआत हुई।

इस लड़ाई का असर करीब 30 लाख आबादी वाले मणिपुर के हर परिवार पर पड़ा है। राज्य बंट चुका है। इंफाल वैली में 53% आबादी वाले मैतेई हावी है, पहाड़ी जिलों में करीब 40% आबादी वाले कुकी।

अब मैतेई पहाड़ी इलाकों में नहीं जा सकते, कुकी इंफाल वैली में। 19 जुलाई को महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने का वीडियो सामने आने के बाद तो देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं।

1947 के बंटवारे का दर्द, 1984 के सिख दंगों जैसी नफरत और कश्मीर से पंडितों के विस्थापन की त्रासदी, मणिपुर तीनों एक साथ महसूस कर रहा है। लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा, ताकि जान बची रहे। उनका नया पता रिलीफ कैंप बने। जितना सामान हाथों में आया, अब वही उनकी संपत्ति है। काम, खेती, पढ़ाई सब पीछे छूट चुकी।

दो समुदायों में इतनी नफरत है कि आधार कार्ड देखकर लोगों को गोलियां मारी जा रही हैं। लड़कियों से रेप हो रहे हैं। अपने इलाके में दूसरे समुदाय का एक आदमी बर्दाश्त नहीं हो रहा।

कुकी और मैतेई मिलिटेंट ग्रुप एक-दूसरे पर गोलियां बरसा रहे हैं। अलग कुकीलैंड, सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन की मांग हो रही है। पहाड़ों से मैतेई भगाए गए, इंफाल वैली से कुकी।

दोनों समुदायों ने अपनी अपनी विलेज डिफेंस फोर्स बना ली हैं। पुलिस की ऑर्मरी से इनसास और एके 47 जैसे हथियार लूट लिए। देसी बंदूकें तैयार कर लीं। गांववालों के पास स्नाइपर राइफल और रॉकेट लॉन्चर हैं। गांवों के बाहर बंकर बन गए हैं। इनमें नई उम्र के लड़कों से बुजुर्ग तक बंदूकें लेकर तैनात हैं। सेना की तरह उनकी शिफ्ट लग रही है। गांव के लोग उनके लिए खाने का इंतजाम कर रहे हैं।

पहले लड़ाई कुकी और मैतेइ के बीच ही थी, अब देखने में आ रहा है कि भीड़ सुरक्षाबलों के जवानों को सीधे टारगेट कर रही है। अभी सुरक्षाबलों की भूमिका सिर्फ शांति बनाए रखने की है। उन्हें जवाबी कार्रवाई का ऑर्डर नहीं है। भीड़ भी सुरक्षाबलों को नुकसान नहीं पहुंचा रही थी। अब पुलिस को आशंका है कि उन पर हमले में उग्रवादी कैडर शामिल हो सकते हैं, क्योंकि सुरक्षाबलों पर आम लोगों की भीड़ हमला नहीं कर सकती।

उधर, केंद्र और राज्य सरकार शांति लाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। गृह मंत्री अमित शाह 29 मई को मणिपुर गए थे। तीन दिन रुके और मैतेई-कुकी के 41 गुटों से मुलाकात की। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय 25 मई से 17 जून के बीच 22 दिन मणिपुर में ही रहे।

सरकारी एजेंसियां मैतेई और कुकी गुटों के साथ बात कर रही हैं। अब तक दोनों पक्षों के साथ 6 दौर की बात हो चुकी है। सरकार ने जवानों की तैनाती कर मैतेई और कुकी आबादी वाले क्षेत्रों के बीच एक बफर जोन बना दिया है। यानी बिना सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन के बंटवारा हो चुका है।

ये बंटवारा सिर्फ मणिपुर में ही नहीं है, पड़ोसी असम और मिजोरम तक इसका असर है। मिजोरम में 25 जुलाई को कुकी समुदाय के समर्थन में रैलियां निकाली गईं। मिजोरम की मिजो कम्युनिटी का मणिपुर के कुकी, बांग्लादेश के कुकी-चिन, और म्यांमार के चिन के साथ जातीय संबंध हैं।

राजधानी आइजोल में एक रैली में मुख्यमंत्री जोरमथांगा भी शामिल हुए थे। इसके विरोध में 27 जुलाई को मणिपुर की राजधानी इंफाल में प्रदर्शन किया गया। मणिपुर के अंदरुनी मामले में जोरमथांगा के दखल से नाराज प्रदर्शनकारियों ने उनके पुतले जलाए। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने भी कहा कि जोरमथांगा राज्य के मामलों में हस्तक्षेप न करें।

मिजोरम में मिलिटेंट ग्रुप रह चुके एक संगठन ने राज्य में रह रहे मैतेई लोगों को राज्य छोड़ने की सलाह दी थी। इसका असर ये हुआ कि यहां भी पलायन शुरू हो गया। हालांकि, मिजोरम सरकार ने सभी को सुरक्षा देने का भरोसा दिया है, पर लोगों का कहना है कि वे जोखिम नहीं लेना चाहते।

एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि मणिपुर का मसला नहीं सुलझा तो पूरे नॉर्थ ईस्ट पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। 23 जुलाई को ही 41 लोगों का एक ग्रुप असम के सिलचर पहुंचा। अधिकारियों ने उन्हें एक सरकारी बिल्डिंग में ठहराया है। इनमें कुछ कॉलेज प्रोफेसर भी हैं। मिजोरम पुलिस ने भी माना है कि बढ़ते तनाव की वजह से मैतेई कम्युनिटी के कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं।

खबरें हैं कि अब तक 1 हजार से ज्यादा मैतेई असम की बराक घाटी पहुंच चुके हैं।  यहां के कछार जिले में सरकार ने रिलीफ कैंप बनाए हैं। जिला प्रशासन के अलावा लोकल लोग भी उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं। उधर, ऑल असम मणिपुरी स्टूडेंट्स यूनियन ने 24 जुलाई को एडवाइजरी जारी कर बराक घाटी के जिलों में रह रहे मिजो को जगह छोड़ने की सलाह दी है।

बराक घाटी, असम के दक्षिणी हिस्से में है। इसका नाम बराक नदी पर पड़ा है। इसमें तीन जिले कछार, करीमगंज और हलाकांडी आते हैं।

AAMSU की तरफ से कहा गया है कि मिजोरम में रहने वाली ज्यादातर मैतेई असम के हैं। मिजोरम में उनके साथ हुए बर्ताव ने असम के मैतेई समुदाय को भड़का दिया है। इसलिए हम सुरक्षा के लिहाज से मिजो को जल्द बराक घाटी छोड़ने की सलाह देते हैं।

सुलग रहा मणिपुर
आंच असम-मिजोरम तक
विभा सिंह

मणिपुर सुलग रहा है। 3 महीने हो गए। 150 से ज्यादा लोग मारे गए। सैकड़ों गांव-घर जला दिए। कुकी और मैतेई समुदाय के बीच लड़ाई चल रही है। दो देशों के बीच चलने वाली जंग की तरह। सरकार है, पुलिस है, सेना, असम राइफल्स, ITBP और BSF के 35 हजार जवान हैं, लेकिन म्यांमार से सटे सरहदी राज्य में जंग नहीं रुक रही।

मैतेई ST का दर्जा और पहाड़ी जिलों में जमीन खरीदने का अधिकार चाहते हैं। हाई कोर्ट ने सरकार से इस पर विचार करने की सलाह दी थी। इसी के विरोध में ट्राइब कम्युनिटी में शामिल कुकी ने प्रदर्शन किया। यहीं से हिंसा की शुरुआत हुई।

इस लड़ाई का असर करीब 30 लाख आबादी वाले मणिपुर के हर परिवार पर पड़ा है। राज्य बंट चुका है। इंफाल वैली में 53% आबादी वाले मैतेई हावी है, पहाड़ी जिलों में करीब 40% आबादी वाले कुकी।

अब मैतेई पहाड़ी इलाकों में नहीं जा सकते, कुकी इंफाल वैली में। 19 जुलाई को महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराने का वीडियो सामने आने के बाद तो देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं।

1947 के बंटवारे का दर्द, 1984 के सिख दंगों जैसी नफरत और कश्मीर से पंडितों के विस्थापन की त्रासदी, मणिपुर तीनों एक साथ महसूस कर रहा है। लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा, ताकि जान बची रहे। उनका नया पता रिलीफ कैंप बने। जितना सामान हाथों में आया, अब वही उनकी संपत्ति है। काम, खेती, पढ़ाई सब पीछे छूट चुकी।

दो समुदायों में इतनी नफरत है कि आधार कार्ड देखकर लोगों को गोलियां मारी जा रही हैं। लड़कियों से रेप हो रहे हैं। अपने इलाके में दूसरे समुदाय का एक आदमी बर्दाश्त नहीं हो रहा।

कुकी और मैतेई मिलिटेंट ग्रुप एक-दूसरे पर गोलियां बरसा रहे हैं। अलग कुकीलैंड, सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन की मांग हो रही है। पहाड़ों से मैतेई भगाए गए, इंफाल वैली से कुकी।

दोनों समुदायों ने अपनी अपनी विलेज डिफेंस फोर्स बना ली हैं। पुलिस की ऑर्मरी से इनसास और एके 47 जैसे हथियार लूट लिए। देसी बंदूकें तैयार कर लीं। गांववालों के पास स्नाइपर राइफल और रॉकेट लॉन्चर हैं। गांवों के बाहर बंकर बन गए हैं। इनमें नई उम्र के लड़कों से बुजुर्ग तक बंदूकें लेकर तैनात हैं। सेना की तरह उनकी शिफ्ट लग रही है। गांव के लोग उनके लिए खाने का इंतजाम कर रहे हैं।

पहले लड़ाई कुकी और मैतेइ के बीच ही थी, अब देखने में आ रहा है कि भीड़ सुरक्षाबलों के जवानों को सीधे टारगेट कर रही है। अभी सुरक्षाबलों की भूमिका सिर्फ शांति बनाए रखने की है। उन्हें जवाबी कार्रवाई का ऑर्डर नहीं है। भीड़ भी सुरक्षाबलों को नुकसान नहीं पहुंचा रही थी। अब पुलिस को आशंका है कि उन पर हमले में उग्रवादी कैडर शामिल हो सकते हैं, क्योंकि सुरक्षाबलों पर आम लोगों की भीड़ हमला नहीं कर सकती।

उधर, केंद्र और राज्य सरकार शांति लाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। गृह मंत्री अमित शाह 29 मई को मणिपुर गए थे। तीन दिन रुके और मैतेई-कुकी के 41 गुटों से मुलाकात की। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय 25 मई से 17 जून के बीच 22 दिन मणिपुर में ही रहे।

सरकारी एजेंसियां मैतेई और कुकी गुटों के साथ बात कर रही हैं। अब तक दोनों पक्षों के साथ 6 दौर की बात हो चुकी है। सरकार ने जवानों की तैनाती कर मैतेई और कुकी आबादी वाले क्षेत्रों के बीच एक बफर जोन बना दिया है। यानी बिना सेपरेट एडमिनिस्ट्रेशन के बंटवारा हो चुका है।

ये बंटवारा सिर्फ मणिपुर में ही नहीं है, पड़ोसी असम और मिजोरम तक इसका असर है। मिजोरम में 25 जुलाई को कुकी समुदाय के समर्थन में रैलियां निकाली गईं। मिजोरम की मिजो कम्युनिटी का मणिपुर के कुकी, बांग्लादेश के कुकी-चिन, और म्यांमार के चिन के साथ जातीय संबंध हैं।

राजधानी आइजोल में एक रैली में मुख्यमंत्री जोरमथांगा भी शामिल हुए थे। इसके विरोध में 27 जुलाई को मणिपुर की राजधानी इंफाल में प्रदर्शन किया गया। मणिपुर के अंदरुनी मामले में जोरमथांगा के दखल से नाराज प्रदर्शनकारियों ने उनके पुतले जलाए। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने भी कहा कि जोरमथांगा राज्य के मामलों में हस्तक्षेप न करें।

मिजोरम में मिलिटेंट ग्रुप रह चुके एक संगठन ने राज्य में रह रहे मैतेई लोगों को राज्य छोड़ने की सलाह दी थी। इसका असर ये हुआ कि यहां भी पलायन शुरू हो गया। हालांकि, मिजोरम सरकार ने सभी को सुरक्षा देने का भरोसा दिया है, पर लोगों का कहना है कि वे जोखिम नहीं लेना चाहते।

एक्सपर्ट आशंका जता रहे हैं कि मणिपुर का मसला नहीं सुलझा तो पूरे नॉर्थ ईस्ट पर इसका बुरा असर पड़ सकता है। 23 जुलाई को ही 41 लोगों का एक ग्रुप असम के सिलचर पहुंचा। अधिकारियों ने उन्हें एक सरकारी बिल्डिंग में ठहराया है। इनमें कुछ कॉलेज प्रोफेसर भी हैं। मिजोरम पुलिस ने भी माना है कि बढ़ते तनाव की वजह से मैतेई कम्युनिटी के कई लोग राज्य छोड़कर चले गए हैं।

खबरें हैं कि अब तक 1 हजार से ज्यादा मैतेई असम की बराक घाटी पहुंच चुके हैं।  यहां के कछार जिले में सरकार ने रिलीफ कैंप बनाए हैं। जिला प्रशासन के अलावा लोकल लोग भी उन्हें सपोर्ट कर रहे हैं। उधर, ऑल असम मणिपुरी स्टूडेंट्स यूनियन ने 24 जुलाई को एडवाइजरी जारी कर बराक घाटी के जिलों में रह रहे मिजो को जगह छोड़ने की सलाह दी है।

बराक घाटी, असम के दक्षिणी हिस्से में है। इसका नाम बराक नदी पर पड़ा है। इसमें तीन जिले कछार, करीमगंज और हलाकांडी आते हैं।

AAMSU की तरफ से कहा गया है कि मिजोरम में रहने वाली ज्यादातर मैतेई असम के हैं। मिजोरम में उनके साथ हुए बर्ताव ने असम के मैतेई समुदाय को भड़का दिया है। इसलिए हम सुरक्षा के लिहाज से मिजो को जल्द बराक घाटी छोड़ने की सलाह देते हैं।

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