भोपाल और बेंगलुरु के बीच की दूरी भले ही 1436 किलोमीटर की हो लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद मध्यप्रदेश के कांग्रेसी ऐसा लगता है जैसे वहां के रहने वाले हों। कांग्रेसियों में यह भावना घर कर गई है कि कर्नाटक में जो हुआ उसे मध्यप्रदेश में भी बिना किसी खास मशक्कत के दोहराया जा सकता है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस की कमान कमलनाथ के हाथ में हैं। कमलनाथ का अनुभव मध्यप्रदेश के किसी भी राजनेता से ज्यादा है। उनमें और कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी कुछ समानताएं हैं। दोनों की अपने-अपने राज्य की पार्टी संगठन पर मजबूत पकड़ है। दोनों ही कुशल प्रशासक माने जाते हैं।
अब जब मध्य प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तब कमलनाथ ने कर्नाटक फार्मूले को लागू करना भी शुरू कर दिया है। उम्मीदवारों का चयन अपने अंतिम चरण में है। कांग्रेस चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले 230 विधानसभा सीटों में से कम से कम 180 उम्मीदवार तय कर लेगी।
कर्नाटक में कांग्रेस की रणनीति तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले सुनील कोनूगोलू को कमलनाथ ने मध्य प्रदेश चुनाव में कांग्रेस के लिए काम करने को राजी कर लिया है। कानूगोलू को सिद्धारमैया ने अपना सलाहकार नियुक्त करके उन्हें कैबिनेट रैंक से नवाजा है। बताया जा रहा है कि कानूगोली की टीम मध्यप्रदेश में डेरा डाल चुकी है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने पिछले दिनों मध्यप्रदेश में 150 सीटें जीतने का दावा किया था, इसके पीछे पार्टी के अंदरूनी सर्वे से मिला आत्मविश्वास है।
ध्रुवीकरण से खतरा
कांग्रेस दोहरी रणनीति से काम कर रही है। पहली, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, बीजेपी विधायकों से जनता का मोहभंग और स्थानीय मुद्दों को करीब से समझना, उन्हें हवा देना। दूसरा, किसी भी तरह के ध्रुवीकरण के षड़यंत्र से बचना। पिछले दिनों मध्यप्रदेश में हिजाब विवाद को उछालने की कोशिश हो, दमोह में एक स्कूल पर कारवाई हो या फिर भोपाल में तथाकथित लव जिहाद और धर्मांतरण के मामले में, कमलनाथ ने चुप्पी साधे रखी।
कमलनाथ के लिए बहुसंख्यकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचाने की सोची-समझी कोशिश जारी है। यही नहीं जून महीने में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के जबलपुर दौरे के दौरान ग्वारीघाट पर नर्मदा पूजा के जरिए कमलनाथ ने बहुसंख्यकों को स्पष्ट संदेश दे दिया है। कार्यक्रम के दौरान पूरे जबलपुर को भगवा आवरण ओढ़ा दिया गया था। खुद को हनुमान जी का परम भक्त कहने वाले कमलनाथ के इस कार्यक्रम में बजरंग बली और अन्य देवी देवताओं के प्रतीकों का भी जमकर उपयोग किया गया। इस पर बीजेपी ने प्रियंका पर यह कहते हुए तंज कसा था कि वो ‘चुनावी हिंदु’ हैं।
घर वापसी
कमलनाथ की रणनीति का एक हिस्सा घर वापसी भी है। उनकी जो 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में चले गए थे। तब सिंधिया 22 विधायकों के साथ पार्टी तोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे जिसकी वजह से कमलनाथ सरकार गिर गई थी। कमलनाथ ऐसे विधायकों और पूर्व कांग्रेस नेताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं जो बीजेपी में जाकर नाखुश हैं या जिन्हें बीजेपी से टिकट नहीं मिला। शिवपुरी के बाहुबली नेता बैजनाथ सिंह यादव ने पिछले दिनों कांग्रेस में घर वापसी की है। बताया जा रहा है कि इसी तरह कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए एक दर्जन से अधिक नेता घर वापसी के सही समय का इंतजार कर रहे हैं। सूत्रों की माने तो 2019 में गुना लोकसभा सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया को पटखनी देने वाले केपी यादव भी कांग्रेस के संपर्क में हैं।
सिंधिया गुट का संघर्ष
केंद्रीय मंत्री के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही अपना कद बनाने में सफल हुए हों लेकिन उनके साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए नेताओं को मध्यप्रदेश बीजेपी में अपनी पैठ जमाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। इन्हें विधानसभा टिकट मिलने की संभावना इसलिए भी कम है क्योंकि वो 2018 में बीजेपी के स्थानीय उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़े थे।
ऐसा माना जा रहा है कि ग्वालियर-चंबल संभाग में टिकट बंटवारे को लेकर बीजेपी में सिरफुटव्वल होना तय माना जा रहा है। सीएम चौहान भी सिंधिया समर्थकों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे। क्षेत्र से आने वाले बीजेपी के कद्दावर नेता नरेन्द्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा महल यानि सिंधिया के धुर विरोधी माने जाते रहे हैं। ऐसे में आने वाले चुनाव में सिंधिया गुट का संघर्ष कम होता नहीं दिख रहा।
हालांकि बीजेपी को अपने ब्रम्हास्त्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर पूरा भरोसा है। आने वाले दिनों में दोनों ही नेताओं की चुनावी रैलियों से मध्यप्रदेश का चुनावी लहर बदलने की संभावना है। लेकिन उनके लिए भी बीजेपी के सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री के पक्ष में माहौल बनाना आसान नहीं होगा। बीजेपी हाईकमान ने शिवराज की एंटी इनकंबेंसी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए मध्यप्रदेस सरकार का नेतृत्व बदलने पर भी विचार किया था लेकिन पार्टी की अंदरूनी आंकलन में शिवराज के अलावा किसी चेहरे के साथ चुनाव में जाने पर और अधिक नुकसान की आशंका जताई गई।
कमल बनाम कमल
अमूमन हर मुद्दे पर प्रखरता से अपनी राय रखने वाले कमलनाथ ने चुनावी बयार को ध्यान में रखते हुए खुद को मीडिया से दूर कर लिया है। अब न हो वो किसी बड़े मीडिया हाउस को इंटरव्यू दे रहे हैं और ना ही किसी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषय पर खुलकर अपनी राय जाहिर होने देते हैं।
भोपाल के मुख्यमंत्री निवास 6, श्यामला हिल्स और कमलनाथ के निजी निवास 9, श्यामला हिल्स में बमुश्किल 100 मीटर की दूरी है। इस दूरी को पाटने के लिए होने वाले संघर्ष को नाथ और चौहान के बीच ‘कमल बनाम कमल’ की तरह देखा जा रहा है।
