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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: मुख्य बिन्दु

शिक्षा एक सार्वजनिक सेवा है। शिक्षा के गुणवत्ता पूर्ण स्वरूप को पहचान कर उसे प्रत्येक बालक तक
पहुंचाना ही शिक्षा देने का मुख्य उद्देश्य है। शैक्षिक प्रणाली को इस प्रकार पुनर्गठित करना होगा कि
वह बालक की मौलिक आवश्यकता को पूरा करे तथा जीवन पर्यंत उपयोगी व लाभदायक सिद्ध हो
सके। इसी क्रम में हम इस शोध पत्र के प्रस्तुत विषय को गहराई से जानने हेतु इसका विश्लेषण करते हैं
तो यह पाते हैं –

5+ 3+3+ 4 डिजाइन

  1. फाउंडेशन स्तर – 5 वर्ष (3 से 8 वर्ष के बच्चों सहित)
    A. आंगनबाड़ी/प्री स्कूल – 3 वर्ष
    B. कक्षा 1-2 प्राथमिक स्कूल – 2 वर्ष
  2. प्रीपेटरी स्तर त्र 3 वर्ष (8 से 11 वर्ष के बच्चों सहित)
    A. कक्षा 3 – 5
  3. मिडिल स्तर – 3 वर्ष (11 से 14 वर्ष के बच्चों सहित)
    A. कक्षा 6 – 8
  4. सेकंडरी स्तर – 4 वर्ष (14 से 18 वर्ष के बच्चों सहित )
    A. कक्षा 9 व 10
    B. कक्षा 11 व 12
    सर्वप्रथम फाउंडेशन स्तर में बालक के प्रारंभिक 5 वर्ष (3 से 8 वर्ष के बच्चों सहित) रखे गए हैं जिनमें से
    प्रथम 3 वर्ष आंगनबाड़ी प्री स्कूल के अंतर्गत तथा बाद के 2 वर्ष में कक्षा 1 व 2 प्राथमिक स्कूल में
    विभाजित किया गया है। इस स्तर में मुख्यतः बहु स्तरीय खेल/क्रियाविधि आधारित शिक्षा पर बल
    दिया गया है।
    इस स्तर की प्रमुख विशेषताओं को हम निम्नानुसार चिन्हित कर सकते है-
    A. आचार – विचार (Ethics)

B. टीम- वर्क और सहयोग (Teamwork and Collaboration)
C. आत्म- पहचान (Self-Identity)
D. विकसित- जिज्ञासा (Developed Curiosity)
E. तार्किक सोच एवं समस्या समाधान की विधा (Logical Thinking and Problem Solving)
F. कला शिल्प एवं संगीत (Art, Craft and Music)
G. प्रकृति से संबंध (Relationship with Nature)
H. रंग, आकार, अक्षर व संख्या (Colours, Shapes, Alphabets & Numbers)

इन सभी को विशेष स्थान दिया गया है। पहले वाली 10+2 व्यवस्था में प्रारम्भ के आंगनबाड़ी/प्री स्कूल
स्तर को भी एकेडमिक स्तर में जोड़कर इसे चार स्तरों में विभाजित किया गया है।
इस स्तर का एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस स्तर में अर्थात 8 वर्ष तक के बच्चों को किसी भी
प्रकार की परीक्षा नहीं देनी होगी जिससे बच्चे कोई मानसिक तनाव महसूस ना करें तथा उन्हें बहुत ही
नवाचार पूर्ण (Innovative) तरीके से शिक्षा प्रदान की जाएगी।
इससे आगे प्रीपेटरी स्तर (3 वर्ष) जो कि 8 से 11 वर्ष तक के बच्चों के लिए है, जिसमें कक्षा 3 से 5 तक
का अध्ययन आता है। किसी भी प्रकार की परीक्षा कक्षा 3 से प्रारंभ होकर उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा ली
जाएगी। कक्षा 5 तक न्यूनतम या कक्षा 8 तक भी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा, क्षेत्रीय या स्थानीय
भाषा में ही रहेगा। किसी भी विद्यार्थी पर कोई भाषा अध्यारोपित (Imposed) नहीं की जा सकेगी।
यहाँ यह उल्लेख भी समीचीन रहेगा कि यद्यपि यह निर्णय बालक के आधारभूत ज्ञान को मजबूती
प्रदान करने के लिए है तथापि कुछ शैक्षणिक विद्वानों द्वारा यह कहा गया है कि शिक्षा का माध्यम
अंग्रेजी होना चाहिए क्योंकि भविष्य में अंग्रेजी ही विश्व में बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करने
में सहायक है।

  1. मिडिल स्तर कक्षा, 6 से 8 तक ( 3 वर्ष, 11 से 14 वर्ष के बच्चों सहित) के स्तर पर विद्यार्थियों हेतु
    शिक्षा के साथ ही एक विषिनवजयट व्यवस्था लागू करने का प्रावधान किया गया है जिसमें 10 दिन की
    बस्ता रहित अवधि ( Bag less Period) रहेगी। इस अवधि में विद्यार्थी स्थानीय व्यावसायिक
    विशेषज्ञों ( Vocational Expertise) से काष्ठ कला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि
    कक्षाओं के माध्यम से स्कूल में सीख सकते हैं। इन 10 दिनों में बालक बिना बस्ते के स्कूल जा सकते
    हैं।
  2. सेकंडरी स्तर: – कक्षा 9 से 12 (4 वर्ष, 14 से 18 वर्ष के बच्चों सहित ) को दो भागों में विभाजित
    किया गया है। प्रथम स्तर पर कक्षा 9 व 10 तक का है जिसमें बोर्ड परीक्षा को यथावत रखा गया है।
    इसमें विद्यार्थी का ध्यान समग्र दृष्टिकोण (Holistic view) तथा आलोचनात्मक सोच एवं लचीलेपन
    ( Critical Thinking and Flexibility) पर केंद्रित किया जाएगा।
    इस स्तर में छात्र को कक्षा 9 में अपने रुचि का विषय चुनने तथा उन्हें ही पढ़ने की बात कही गई है। इसे
    हम बहु विषयक अध्ययन ( Multi-Disciplinary study) की श्रेणी में रख सकते हैं जिसमें विद्यार्थी
    किसी भी धारा ( Stream)- विज्ञान, कला, वाणिज्य- में से अपनी रुचि के किन्हीं भी विषयों का चयन
    कर सकता है। इससे विद्यार्थी का समग्र दृष्टिकोण (Holistic view) तथा आलोचनात्मक सोच एवं
    लचीलेपन ( Critical Thinking and Flexibility) की तरफ ध्यान आकर्षित होता है।
    सेकेंडरी स्तर में एक मुख्य परिवर्तन के तौर पर कक्षा 9 से 12 तक बालकों द्वारा कोई भी विदेशी भाषा
    जैसे जर्मन, फ्रेंच आदि के अध्ययन को भी जोड़ा गया है। विद्यार्थी कक्षा 11 व 12 तक बहु भाषाओं में
    भी पारंगत हो सकेगा जिससे भविष्य में उसके रोजगार और उसके अवसरों में बढ़ोत्तरी हो सकेगी।
    नई शिक्षा नीति 2020: एक अवसर
    भारत की इस नई शिक्षा नीति का विश्लेषणात्मक अध्ययन करने के पश्चात यह बात निश्चय ही
    हमारे मस्तिष्क पटल पर आती है कि इस विस्तृत शिक्षा नीति को एक अवसर के रूप में लेकर भारत
    की शिक्षा की नींव को सुंदरता प्रदान की जा सकती है।
    प्रथम स्तर जिसे फाउंडेशन स्तर कहा गया है, उसके 5 साल के कालखंड को दो स्तरो – प्रथम स्तर के 3
    वर्ष जिसमें बालक को आंगनबाड़ी के माध्यम से खेल-खेल में सीखना, किंडर गार्डन विधि के माध्यम
    से तथा द्वितीय स्तर के 2 वर्ष जिसमे कक्षा 1 से 2 तक मातृभाषा में बिना किसी बोझ के बालक को
    आधारभूत वस्तुओं का ज्ञान कराना- में विभक्त किया गया है। यह एक सुनहरा अवसर हो सकता है
    क्योंकि जब तक बालक की नींव मजबूत नहीं होगी वह आगे जाकर किसी भी क्षेत्र में सफल नहीं हो
    सकता है। इस व्यवस्था को सार्थक एवं साकार रूप देने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं तथा प्राथमिक
    शिक्षकों के प्रशिक्षण भी आवश्यक है। मनोविज्ञान के आधार पर यदि देखा जाए तो विभिन्न अध्ययनों
    में यही कहा गया है कि बालक के सीखने के सबसे महत्वपूर्ण वर्ष उसके प्रारम्भिक 6 वर्ष होते हैं।
    इस प्रकार प्रीपेटरी स्तर (3 वर्ष), कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों को सभी प्रकार का अध्ययन उनकी अपनी
    समझ के आधार पर मातृभाषा या किसी क्षेत्रीय भाषा में होने से अधिगम का प्रतिशत बढ़ सकेगा। इस
    स्तर पर विद्यार्थी पर किसी अन्य भाषा को अध्यारोपित नहीं किया जा सकेगा। यह भी एक सुअवसर
  3. है जिसमें विषय के मूल ज्ञान को समझने के लिए बच्चों को किसी भाषा विषेश में ही उलझ कर रहना
  4. ना पड़े।
  5. इसी क्रम में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों को और अधिक आवश्यकता है कि इस समय उन्हें अपनी
  6. मातृभाषा में सभी नियम सिद्धांत सिखाया जाए।
  7. इस नीति में एक नए अवसर के तौर पर 10 दिन बस्ता रहित अवधि ( Bag less Period) के रखे गए हैं
  8. जिससे बच्चे अपनी व्यक्तिगत क्षमता एवं रुचि के हिसाब से वह किसी भी व्यवसाय शिक्षा जैसे
  9. काष्ठकला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि की शिक्षा प्राप्त करें। हमारे देश में
  10. वर्तमान में मौजूद शिक्षा प्रणाली में बालक केवल किताबी ज्ञान तथा बस्ते के बोझ के मारे अपनी
  11. रुचियों को पोषित करने का अवसर ही खो देता है। यह एक अच्छी पहल है।
  12. कक्षा 9 से 12 तक के 4 वर्ष जिसे सेकेंडरी स्तर कहा गया है, अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। इस स्तर पर
  13. बालक में समझ आ जाती है कि वह किस विषय में रुचि रखता है। कक्षा 9 में ही उसे विभिन्न क्षेत्र के
  14. विषयों काष्ठकला, बागवानी, मिट्टी कला, स्थानीय कलाकारी इत्यादि में से अपनी पसंद के विषय
  15. चुनकर पढ़ने की स्वतंत्रता होगी तथा साथ ही व्यवसाय या रुचि के आधार पर कोई अन्य भाषा को
  16. सीखने का भी अवसर मिलेगा। इस व्यवस्था में बालक की अंतर्निहित कलाओं, क्षमताओं तथा रुचि के
  17. साथ अध्ययन का सुनहरा अवसर मिलेगा। इस प्रकार इस नई शिक्षा नीति को यदि भारत की युवा
  18. तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए शुभ अवसर के रूप में लिया जाए तो भारत अपने प्राचीन बौद्धिक
  19. स्तर को प्राप्त कर सकता है।
  20. नई शिक्षा नीति 2020: क्रियान्वयन की चुनौतियां
  21. निश्चय ही नहीं शिक्षा नीति 2020 को पूरे देश में क्रियान्वित करना चुनौतीपूर्ण कार्य है। नई शिक्षा
  22. नीति 2020 को लागू करने में पांच मुख्य चुनौतियां हैं जो निम्न प्रकार से हैं-
  23. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में हमारे समक्ष प्रथम चुनौती इस रूप में विद्यमान है
    कि भारत सरकार द्वारा शिक्षा पर हमारे देश की जीडीपी का लगभग 6 % खर्च किया जाना प्रस्तावित
    है परंतु यह तथ्य वर्तमान में भी वाद-विवाद के योग्य है कि क्या यह 6 % अंश खर्च किया जा रहा है या
    अब किया जाएगा? यह प्रश्न अत्यन्त प्रासंगिक है क्योंकि यह प्रावधान देश की राष्ट्रीय शिक्षा नीति
    2020 से पूर्व में लागू की गई दो शिक्षा नीतियों में भी किया गया था परंतु वास्तव में धरातल पर आंकड़े
    ऐसा नहीं दर्शाते हैं। आर्थिक समीक्षा 2018-19 के आंकड़ों पर यदि गौर किया जाये तो स्पष्ट होगा कि
    हमारा देश कुल जीडीपी के 3 % से भी कम शिक्षा पर खर्च करता है। शिक्षा पर कुल सार्वजनिक खर्च
  24. प्रति विद्यार्थी तथा शैक्षिक गुणवत्ता की दृष्टि से भारत का विश्व में 62वां स्थान है। शिक्षक-विद्यार्थी
  25. अनुपात ( Teacher- Pupil Ratio) भारत में अभी भी अत्यन्त न्यून है। देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र
  26. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भूटान, जिंबाब्वे, स्वीडन, फिनलैंड, ग्रेट ब्रिटेन, मलेशिया,
  27. दक्षिण अफ्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका इन सभी देशों में शिक्षा पर उनकी जीडीपी का भारत से अधिक
  28. प्रतिशत खर्च किया जा रहा है। कोठारी आयोग (1964) में भी 6 % अंशदान ही शिक्षा पर खर्च करने का
  29. प्रावधान था परंतु 2021 तक यह नहीं हो पाया। एक रोचक तथ्य यह भी सामने आता है कि जैसे-जैसे
  30. हमारी कुल जीडीपी में वृद्धि हुई है वैसे-वैसे उसका 3% से भी कम शिक्षा पर खर्च किया गया है। यह
  31. हमारे देश की सरकार पर एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है। इसमें सुधार के साथ ही शिक्षा की गुणवत्ता को
  32. बेहतर किया जा सकता है।
  33. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में हमारे समक्ष द्वितीय चुनौती इस रूप में विद्यमान है
    कि राष्ट्रीय टेस्टिंग एजेंसी (National testing Agency- NTA) द्वारा ही राष्ट्रीय स्तर पर परीक्षा
    आयोजित कर देश के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में प्रवेश दिया जाएगा तथा समस्त
    विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय अलग से अपनी परीक्षा आयोजित नहीं करवा पाएंगे। यह एक
    अच्छी पहल है परंतु यदि इसमें परीक्षा व शिक्षा के अंकों के अतिरिक्त यदि किसी विद्यार्थी की अन्य
    रुचि जैसे कोई खेल, कला आदि को भी साथ में वरीयता देने की बात कही जाती तो कहीं बेहतर विकल्प
    होता। वहीं शिक्षा के समवर्ती सूची में होने के कारण अलग-अलग राज्य और क्षेत्रवार भी भिन्नता से
    विवाद उत्पन्न होने की आशंका रहेगी।
  34. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में हमारे समक्ष एक अन्य चुनौती इस रूप में विद्यमान है
    कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कक्षा 5 या कक्षा 8 तक मातृभाषा में ही शिक्षण की बात कही गई है।
    यह भी केवल वैकल्पिक है, आवश्यक नहीं है। इस व्यवस्था को जो निजी क्षेत्र के बड़े विद्यालय हैं, उन्हें
    मानने के लिए कोई बाध्यता नहीं होने से उनका शिक्षा प्रदान करने का माध्यम तो अंग्रेजी रहेगा तथा
    केवल सरकारी विद्यालयों में मातृभाषा में आधारभूत शिक्षा प्रदान करने से क्या यह भारत के बालकों
    को दो वर्गों में विभाजित नहीं करेगा ? सामाजिक-आर्थिक विषमता की इस गहरी खाई को आज भी
    समाज में देखा जा सकता है। मनोवैज्ञानिक तौर पर भी एक बालक के शुरुआती वर्षों में शिक्षा या कोई
    भाषा को सीख पाना ज्यादा आसान होता है। क्या जिस बालक ने कक्षा 5 या 8 तक अंग्रेजी भाषा को
    जाना ही नहीं, वह भविष्य में अंग्रेजी भाषा व माध्यम में कुशलता से शिक्षा ग्रहण कर सकेगा, वर्तमान
    वैश्विक व्यवस्था में अंग्रेजी भाषा की मान्यता सर्वविदित है। चाहे कोई नौकरी या कोई अन्य कार्य हो
    उसमें अंग्रेजी की महत्ता व वरीयता कोे कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। हमारे देश में यही
  35. वास्तविकता है। प्रसंगवष एक उदाहरण हमें चीन का भी ध्यान रखना चाहिए जहां पहले अंग्रेजी नहीं
  36. सिखाई जाती थी किंतु अब उसको प्राथमिकता से सिखाया जाता है।
  37. स्नातक स्तर पर बहु विषयक (multi-disciplinary) या बहुआयामी तरीके से पढ़ाई एक बेहतर
    विकल्प है परंतु इतने प्रयास के बाद भी कुछ महत्वपूर्ण तथा जागरूकता फैलाने वाले आवश्यक विषय
    जैसे- स्त्री-शिक्षा, लैंगिक-शिक्षा, सांस्कृतिक-शिक्षा, विषमता एवं बहिष्करण-शिक्षा, पर्यावरण- शिक्षा,
    विकास की शिक्षा, यह सभी हाशिए पर रह गई है। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण संबंधी मुद्दे पर अध्ययन
    करने की परम आवश्यकता है।
  38. अध्यापक प्रशिक्षण भी एक प्रमुख चुनौती है। जैसे गुणवत्तापूर्ण अध्ययन के लिए कुशल शिक्षकों के
    प्रशिक्षण की वित्तीय व्यवस्था (Funding) कहां से होगी? इसका मूलभूत ढांचा (infrastructure) क्या
    होगा ? मूल्यांकन प्राधिकरण कौन होगा ? इन सभी प्रश्नों के बारे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मौन है।
  39. भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशी शिक्षा की बात कही गई है। इसके
    आधार पर इस प्रारूप में कहा गया है कि ऐसे विद्यार्थी जो अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग
    और विशेष पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं, उनके लिए मेरिट के आधार पर स्कॉलरशिप के प्रयासों में तेजी
    लाई जाएगी तथा राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल को विस्तारित किया जाएगा जिससे छात्रवृत्ति मिलने में
    सहायता मिले तथा यह कार्य अविलंब हो सके। सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है परंतु इस नीति
    में अनारक्षित वर्ग के ऐसे विद्यार्थी जिनकी आय बहुत कम है, उन विद्यार्थियों के लिए कोई ध्यान
    नहीं दिया गया है। यदि कोई एक वर्ग भी छूट गया या अछूता रह गया है तो समावेशी शिक्षा का सपना
    कैसे साकार हो सकेगा ?
  40. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सकल नामांकन अनुपात लक्ष्य उच्च शिक्षा में 50% तथा माध्यमिक
    शिक्षा में 100% का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में यह लक्ष्य उच्च शिक्षा में 25.8 प्रतिशत तथा कक्षा 9
    (माध्यमिक शिक्षा) में 68% है। यह लक्ष्य वास्तविक तौर पर कुछ अधिक वास्तविक, प्रायोगिक व
    प्राप्त करने योग्य होने चाहिए क्योंकि आज के परिपेक्ष में कक्षा 8 के बाद ड्रॉप-आउट (Drop- out)
    बच्चों की संख्या अधिक है। इसे कम करके ही हम माध्यमिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा में सम्माननीय
    सकल नामांकन अनुपात (Respectable Gross Enrolment Ratio) प्राप्त कर सकते हैं।

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