राहुल और कांग्रेस के लिए भी अब बड़ा खेल है. शर्ट का एक बटन खोलकर चलने वाले राहुल अब चार बटन खोल कर चल रहे हैं. यह सांसदी गंवाने का प्रताप है. राहुल विपक्ष के पोस्टर बॉय बन गए हैं. हीरो बन गए हैं. पर एक राजनेता बनना अभी बाकी है. देश का लोकतंत्र खतरे में हैं, इसका राग आलापने वाले राहुल को अब लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव याने चुनाव में अपनी ताकत को झोंकना सीखना होगा. गुजरात, हिमाचल, त्रिपुरा, मेघालय,नागालैंड राज्यों के हाल ही के चुनाव में न के बराबर मौजूद रहे राहुल को अब कर्नाटक में ताकत झोंकनी होगी. कर्नाटक का चुनाव ही कांग्रेस को 2023 के पांच राज्यों के लिए तैयार करेगा. हिंदी पट्टी के यह राज्य कांग्रेस के लिए अहम है. मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक की ताकत से आगे बढ़ेगे. कर्नाटक भाजपा के लिए बहुत खास है. कांग्रेस के बागियों के दम पर सरकार बनाने वाली भाजपा ने यहां अपनी जमीन को पिछले चुनाव में ही खो दिया है. उसके पास दमदार नेताओं का टोटा है. चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ना है. जबकि कर्नाटक में क्षेत्रियता सर चढ़ कर बोलती है.
राहुल अपनी चार हजार किमी की पैदल यात्रा से कांग्रेस को नई ताकत और उर्जा दे चुके हैं. वे जननेता बनने की राह पर है . पर एक मंजे हुए राजनेता की यात्रा उनकी अभी शुरू नहीं हुई है. इसके सबक उन्हें केजरीवाल से, मल्लिकार्जुन खरगे से लेने की जरूरत है. बड़े से बड़ा आरोप पैने व्यंग्य में कहना राजनेता की खूबी होती है. अपनी बात भी कह जाओ वह भी इस अंदाज में जैसे कुछ कहा ही नहीं . सुना भी दो जैसे कुछ सुनाया भी नहीं. राहुल अभी इसमे कच्चे खिलाड़ी हैं. तीखा बोलते हैं और अपना कहा गया खुद भी नहीं सुन पाते हैं.
केजरीवाल हो या ममता या अखिलेश या केसीआर सबके लिए राहुल अभी मोदी के खिलाफ प्रताड़ना का कार्ड है पोस्टर है लेकिन नेता नहीं है. कर्नाटक का चुनवा ही राहुल की नेतागिरी के रास्ते खोलेगा. मैदानी संघर्ष में जूझ रही भाजपा के लिए यहां मुश्किल हालाता हैं. उसके पास यहां मोदी ही चेहरा है. जबकि कांग्रेस खरगे, सिध्दारमैया, डीके शिवकुमार जैसे ओल्ड गार्डस की दमदारी से है. हिमाचल, त्रिपुरा,मेघालय, नागालैंड की तरह यहां भी चुनावी राजनीति में राहुल ने दम नहीं भरा तो कांग्रेस विपक्ष की अगुवाई नहीं कर पाएगी. कर्नाटककी जीत ही कांग्रेस का रास्ता बाकी राज्यों में खोलेग
राग दरबारी – 2 लिखी जाए तो इस बार कहानी शिवपाल गंज से नहीं सूरत से शुरू होगी. जबरदस्त पटकथा का प्लाट तैयार हो चुका है. जो आज़ादी के अमृत काल की एक दिलचस्प तस्वीर पेश कर रहा है. पंचर पका पका कर रेंग रहा लोकतंत्र का ट्रक अब राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल और लीगल सेल के नए पहियों के भरोसे हो गया है. जो किसी भी सांसदी के परखच्चे उड़ाने का दम रखता है. जो कमाल बैलेट न कर सके उसे करने का माद्दा यह भारी –भरकम तन्ख्वाह पाने वाले प्रोफेशनल्स रखते हैं. बयानों को खंगालना, उसमें कानूनी दांवपेच ढूंढ़ना, देश भर में फुरसतिए चल रहे अपने पार्टी नेताओं के हवाले करना और दांव लग जाए तो अच्छे से अच्छे बड़े से बड़े सांसद को घर बैठाना. यह आने वाले कल की राजनीति का ढंग हो सकता है.
बयानों के एक ओवरटेक से सांसदी गंवाने वाले राहुल गांधी ने देश के चुनावी राजनीति की फिजां बदल दी है. माहौल को गरमा दिया है. समूचा विपक्ष झांड- पोछ कर राहुल के पीछे खड़ा दिखाई दे रहा है. खौफ का साया है. बिना ब्रेक का ट्रक शार्ट-कर्ट मार कर सांसदी को रौंद रहा है. आने वाले वक्त में अब ईडी, सीबीआई से ज्यादा ट्रक का खौफ सताने वाला है. जिसके चलते रकीब – हबीब सब साथ हो लिए हैं.
वायनाड़ की मासूम जनता जिसने चार लाख वोटों से राहुल गांधी को जीताया है समझ ही नहीं पा रही है कि यह क्या खेल हो गया है. सरकार-शासन-कानून सब राग दरबारी गाने लगे तो यहीं होता है. अब राज्यों में यहीं होने वाला है. जहां भी राग दरबारी के सुर सध जाए विपक्षी दल के विधायकों को साफ किया जाए. हार्स ट्रेडिंग से ज्यादा आसान यह खेल है. आम आदमी के लिए तो भारी बोझ से लदी हुई कोर्ट अब नेताओं के दांव- पेंची खेल से भी लदने वाली हैं.
क्या राहुल गांधी भाजपा के लिए बड़ी भूल साबित होंगे. इसका जवाब तो आने वाले कल में छिपा है. पर एक बात साफ है कि भाजपा ने 2024 का एक बहुत अहम दाव खेल दिया है. विपक्ष को फेसलेस याने चेहरा विहिन करने का. राहुल को हटाना याने कांग्रेस मुक्त भारत के अहंकार से भरे सपने को खुली आंखों से देखना है. राहुल अब किस अदालत में जाते हैं क्या राहत पाते हैं यह अलग मसला है. पर राजनीतिक तौर पर भाजपा ने अपना नैरेटिव साफ कर दिया है.
भाजपा को एक मात्र खतरा कांग्रेस से है. ममता, केजरीवाल, अखिलेश, केसीआर, कभी भी राजनीतिक फायदे के लिए भाजपा के साथ हो सकते हैं. वामपंथी भी राज्यों में भाजपा के साथ गए हैं. सिर्फ कांग्रेस है जो किसी भी हालत में भाजपा के साथ नहीं है. नीतीश और शरद पंवार इसे पहचाने हैं इसीलिए भाजपा के खिलाफ कांग्रेस की मौजूदगी की लंबी तान मारते रहते हैं.
चार हजार किमी की पैदल यात्रा के बाद राहुल ने अपनी मौजूदगी को वजनदार किया है. जिसने ममता, केजरीवाल, केसीआर, अखिलेश को असहज किया है. वे तीसरा मोर्चा बनाने की तैयारी में है. ममता मोदी के खिलाफ राहुल को खड़ा करने से नाराज़ भी है. बावजूद इसके वे आज कांग्रेस के साथ हैं. यहीं हाल बाकी नेताओं का है. एक बहुत ही हल्के – फुल्के शॉट से राहुल को संसद से बाहर करने का गेम सेट करने वाला खेल उन्हें परेशान कर रहा हैं.
ममता की पहचान बंगाल से बाहर नहीं है. केसीआर तेलंगाना के बाहर अपना वजूद नहीं रखते हैं. केजरीवाल दिल्ली, पंजाब के बाद सब दूर अपने फैलारे में लगे हैं. यह तमाम नेता खुद को 2024 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के बतौर देख रहे हैं. राहुल का मैदान से हटना भाजपा ही नहीं इन तमाम नेताओं के लिए भी बहुत अहम है. राहुल अगर उपरी अदालतों से अपनी सांसदी नहीं बचा पाते हैं तो वे 2024 की रेस से बाहर हो जाएंगे. ऐसे वक्त भाजपा के खिलाफ कोई संभावना बनती है तो ये नेता मैदान में होंगे. आज कांग्रेस को साथ देने का मतलब है कल के समर्थन के लिए अवसर तलाशना. दिल्ली में तो जुमला चल पड़ा है कि आज राहुल के मुद्दे पर एक साथ हो रहे विपक्षी नेता पिछले दरवाजे से शेरवानी सिलवाने का नाप भी दे रहे हैं.
कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले सांसदी गंवाने वाले राहुल को लेकर टाइमिंग का सवाल भी उठ रहा है. सूरत की एक अदालत में पहले तो एक साल मुकदमा रुकवाया जाता है. फिर जज बदलने के बाद फिर शुरू करवाया जाता है. चंद हफ्तों में तारीखें भी लग जाती हैं. किसी को याद भी नहीं है कर्नाटक के कोलार में राहुल ने 2019 में नीरव मोदी, ललित मोदी और सारे मोदी चोर क्यों होते है यह कहा था. पर कोर्ट याद रखकर दो साल की जबरदस्त सजा सुनाती है. एक्ट के मुताबिक सजा एक महीना भी कम होती तो सांसदी टीक जाती.
दरअसल 2018 कर्नाटक का चुनाव हारने वाली भाजपा ने , जोड़ – तोड़ की सरकार बना ली. बावजूद इसके वह अपनी जमीनी ताकत को नहीं बढ़ा पाई. यह गैर हिंदी भाषी राज्य है जहां मोदी का कार्ड नहीं कैडर को चलना है. वहां भाजपा कोई मजबूत चेहरा नहीं दे पाई है. जिसके दम पर 2023 – 24 का खेल जमाया जा सके. कांग्रेस सत्ता से बाहर है लेकिन अपने क्षत्रपों के दम पर मजबूत है. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, डीके शिवकुमार, सिध्दारमैया बाजी पलटने का दम रखते हैं.
महाराष्ट्र के बाद कर्नाटक ऐसा राज्य है जो किसी भी राजनीतिक दल के लिए चुनावी फंड की टकसाल है. भाजपा यह मौका कांग्रेस को नहीं दे सकती. राहुल की सांसदी जाने का असर कांग्रेस के 2023- 24 के चुनावी फंड पर भी होगा. भाजपा के लिए दक्षिण का एंट्री गेट कर्नाटक है. वहां 35 फीसदी से ज्यादा ओबीसी हैं. राहुल की सांसदी जाने पर भाजपा ओबीसी प्रताड़ना का कार्ड चला रही है. कांग्रेस को ओबीसी के खिलाफ खड़ा कर रही है. इसका मकसद अखिलेश, नीतीश, तेजस्वी यादव को कांग्रेस से दूर रखना है. अगर कार्ड चल गया तो पिछड़ों के यह नेता कांग्रेस का साथ नहीं दे पाएंगे. खरगे दम लगा कर पूछ रहे हैं- नीरव मोदी, ललित मोदी कौन से पिछडे हैं? वे तो भगोड़े हैं उन्हें चोर कहने क्या परेशानी है.
सीने से चिपके हुए पत्तों से खेल चल रहा है. दिलचस्प यह है कि हर खिलाड़ी छिपे हुए पत्तों का राज जानता है. भाजपा के इस दाव में कांग्रेस भी खेल रही है और विपक्ष भी.
कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल की सांसदी का जाना और उसके बाद की कानूनी लड़ाई उसके वोट बढ़ा सकती है. सहानुभूति की लहर उसकी नाव पार लगा सकती है. पर हालात कुछ और ही बयानी कर रहे हैं- कांग्रेस का मुकाबला मोदी के राष्ट्रवाद और हिंदूत्व वादी चेहरे से है. जिसने इस देश के जनमानस को जबरदस्त तरीके से बदला है. यहीं कारण है आज देश का कोई नेता मुकाबले में नहीं है. कांग्रेस- विपक्ष की लाख कोशिश के बावजूद पेट्रोल की कींमते, गैस सिलेंडर के दाम,बेरोजगारी, गरीबी , भ्रष्टाचार चुनावी मुद्दा नहीं है.
एंग्रीमेन की छवि के साथ पेश हो रहे राहुल वो ही गलती कर रहे हैं जो 2019 में उन्होंने रफाल को लेकर की. चौकीदार चोर है का नारा मोदी पर तो नहीं चिपका उल्टा कांग्रेस को जनता से दूर ले गया. अब सिर्फ अड़ानी को लेकर चल रहे राहुल फिर वहीं भूल कर रहे हैं. अड़ानी का मुद्दा ड्राइंगरूम में बैठकर शेअर कारोबार करने वाले, करोड़ो अरबों के उतार- चढ़ाव समझने वाले दो फीसदी लोगों का है. देश के 85 करोड़ लोगों को याद रहता है- 5 किलो मिल रहा मुफ्त अनाज. सड़क पर रोजी- रोटी कमाने के लिए निकला आदमी न तो अडानी को जानता है न 20 हजार करोड़ को उसने देखा है. कांग्रेस सिर्फ सासंदी जाने और लोकतंत्र के हमले की बात से जनता के बीच जगह नहीं ले सकती है.
भारी कश्मकश और असमंजस से भरे दौर में अगर भाजपा यह मानकर चल रही है कि राहुल के हटते ही कांग्रेस चेहरा विहीन होगी तो यह उसकी भूल है. राहुल अगर बुरी तरह उलझते हैं तो कांग्रेस का नया चेहरा प्रियंका गांधी है. जिस तरीके से प्रियंका ने अपने भाई और परिवार का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री को कायर बताया है वह उस तेवर की याद दिला रहा है जब उसने अरूण नेहरू के लिए कहा था- ये वहीं शख्स हैं जिन्होंने मेरे पिता की पीठ पर छुरा भोका था. बहुत आसानी से अपनी बात लोगों तक पहुंचाने वाली प्रियंका कांग्रेस का भविष्य हो सकती है.
