डॉ. (प्रो.) विजय सक्सेना
डायरेक्टर, स्मार्ट सिटी हॉस्पिटल एवं समाज सेवी, भोपाल
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।
यह पंक्तियां हिंदी के प्रसिद्ध कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र की लिखी हुई है। जिसका अर्थ
है बिना मातृभाषा की उन्नति के, समाज की उन्नति होना संभव नहीं है। अपनी
भाषा के ज्ञान के बिना दिल की पीड़ा को दूर करना भी संभव नहीं है।
क्या यही सोच रही होगी मध्यप्रदेश में मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई को अपनी
मातृभाषा हिंदी में कराने की? भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की लिखी हुई बात को किसी
भी तरह से गलत साबित करना मेरा उद्देश्य नहीं हो सकता, ना ही मेरा उद्देश्य
सरकार की मेडिकल कॉलेज की पढ़ाई हिंदी में कराने की पहल पर कोई सवाल
उठाना है।
एक डॉक्टर एवं एक चिंतक होने के नाते मैं यह बात करना चाहता हूं कि आखिर
इस पहल के परिणाम क्या हो सकते हैँ? वैसे कोई भी चीज जब शुरू की जाती है
तो उसके साथ में काफी सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, काफी सारे
लोग विरोध में भी आवाज उठाते हैं। इन सब के बाद भी सरकार ने बड़ी हिम्मत
से यह पहल की एवं उसकी इस पहल करने की हिम्मत की निश्चित रूप से
सराहना करनी चाहिए।
परंतु फिर मन में एक सवाल भी आता है, क्या वाकई चिकित्सा शिक्षा का स्तर
बेहतर होगा? जब मैं करीब 28 वर्ष पूर्व मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए
गया था तब कितने लोग मेरे क्लास में हिंदी मीडियम से सिलेक्ट होकर मेडिकल
कॉलेज में आए थे? याद किया तो लगा जैसे करीब आधी और या उससे भी ज्यादा
क्लास हिंदी मीडियम से पढ़कर पीएमटी की परीक्षा में मेरिट वालों से भरी हुई थी।
शुरुआत के कुछ दिनों में मेडिकल की किताबों में लिखी अंग्रेजी को समझना
कठिन तो होता है, शायद हिंदी मीडियम से आए लोगों को मेहनत भी थोड़ी ज्यादा
करनी पड़ी। परंतु यह बात भी सच है कि ज्यादा मेहनत के परिणाम भी उतने ही
अच्छे होते हैं। मैंने देखा कि हिंदी मीडियम से पढ़ कर आए लोगों ने अपनी
मेडिकल की पढ़ाई में कई अच्छे एवं ऊंचे आयाम स्थापित किए तो फिर भी क्या
हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई करवाना जरूरी था?
जो बच्चे प्री-मेडिकल टेस्ट जैसे टॉप एग्जाम को क्लियर करके आ रहे हैं क्या वह
अंग्रेजी की छपी हुई किताबों को पढ़ने में असमर्थ होंगे? उनको समझने में असमर्थ
होंगे? मुझे ऐसा प्रतीत हुआ नहीं।
अब मैं दूसरी बात पर आता हूं और वह यह है कि हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई
कराने से हम क्षेत्रीय चिकित्सक तो पैदा करेंगे किंतु क्या वह चिकित्सक
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सक्षम हो पाएंगे? क्या उनके लिए
आगे की पढ़ाई करने के लिए मध्य प्रदेश से बाहर जा पाना संभव होगा? या फिर
उनका पोस्ट ग्रेजुएशन भी हिंदी भाषा में मध्यप्रदेश में ही कराया जाएगा?
हम इसको इस तरह से भी सोच सकते हैं कि जिन लोगों को अपनी 12th तक की
पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम में करने को ना मिल सकी उन्हें मेडिकल कॉलेज में
एडमिशन के बाद एक मौका मिलता है। अपनी पढ़ाई को अंग्रेजी में करने का और
प्रत्येक क्लास में सफलता पाने के बाद निश्चित तौर पर उनका आत्मविश्वास भी
बढ़ जाता है।
यूं तो हम हिंदी भाषी होने के कारण से सोचते भी हिंदी में है, बोलते भी हिंदी में
है, सपने भी हिंदी में देखते हैं किंतु जब अपनी किताबें अंग्रेजी में पढ़ते हैं तो एक
भाषा को समझने की सक्षमता और विकसित कर लेते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो मुझे नजर आती है वह है कि, आपके मेडिकल कॉलेज में
जो लोग हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने की कोशिश कर रहे हैं वह देश से बाहर
जाकर तमाम इंटरनेशनल मेडिकल कॉन्फ्रेंस में या किसी फेलोशिप में या फिर
किसी और तरह की हायर मेडिकल एजुकेशन डिग्री में कैसे पढ़ाई कर सकेंगे? हिंदी
मीडियम से पढ़ कर आए बच्चों को अगर अंग्रेजी समझने में तकलीफ हो रही है,
तो ऐसी स्थिति में उनके लिए एक अलग से व्यवस्था करके अंग्रेजी सीखने की
इनिशियल फेज में एक्स्ट्रा क्लासेज चालू की जा सकती है। इसके लिए पूरा कोर्स
हिंदी में तब्दील करने की जरूरत थी।
आज की तारीख में तो सब कुछ इंटरनेट पर आपके उंगलियों पर मौजूद भी है, जो
पहले के समय मे नहीं था। इतिहास उठा कर देखे तो हमारे देश की बड़ी-बड़ी
हस्तियां जिनके पास पढ़ने के लिए ना किताबें थी, ना बिजली और ना अन्य
सुविधाएं थीं, लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
अपना नाम कमाया है। देश का नाम भी रोशन किया है। तो क्या लगता नहीं कि
कि फर्स्ट ईयर में आए स्टूडेंट्स में इस तरह की लगन और जज्बा पैदा किया
जाए, ना कि हिंदी किताबे थमा दी जाए।
कुछ वर्ष पहले टेक्निकल एजुकेशन में भी इस तरह का प्रयोग किया गया था किंतु
उसके कुछ बहुत पॉजिटिव परिणाम आए ऐसा नजर तो नहीं आया। फिर भी अंत
में सरकार की इस पहल को बहुत साधुवाद कि उन्होंने हिंदी मीडियम से आए
बच्चों के लिए इस तरह से सोचा। मेरा सोचना यह भी है कि क्या इस तरह की
सोच से उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा या फिर शुरू से ही एक आत्मविश्वास की कमी
के साथ हर क्लास में एक ध्रुवीकरण सा हो जाएगा।
क्या ऐसा नहीं कि हमें अपने शिक्षा का स्तर शुरू से ही इस तरह से निर्मित करना
चाहिये कि बच्चों को आने वाले समय में किसी भी तरह की भाषा में एजुकेशन
समझने की तकलीफ ही ना हो।
चिकित्सा शिक्षा में भी बहुत सारे ऐसे और भी महत्वपूर्ण पहलू है जिस पर सोचने
की और जिसमें सुधार करने की तमाम जरूरत है इसलिए हिंदी में पढ़ाई इतना
जरूरी मुद्दा मैं नहीं मानता। बच्चों को मेहनत करने दीजिए वह अंग्रेजी क्या और
भी तमाम भाषाएं सीखने के लिए एकदम उपयुक्त उम्र के पड़ाव में है और जब
वह पानी में उतरेंगे तो तैरना भी सीख जाएंगे।
