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रिटर्न, ऑफ खालिस्तान भिंडरावाला टू अमृतपाल

35 साल बाद पंजाब में खालिस्तान आंदोलन की ठंडी-बुझी आग फिर से सुगबुगा उठी है. सितंबर 2022 में कुछ सिख युवाओं के साथ अमृतपाल नामक शख्स ने जरनैल सिंह भिंडरावाले के गांव मोगा से यह आग सुलगाई, जो अब पूरे पंजाब को अपनी चपेट में ले रहा है.

पंजाब पुलिस इस आग को बुझाने के लिए अब अमृतपाल की शिकंजे में लेना चाहती है, लेकिन एक पखवाड़े से वो फरार है. पुलिस ने उस पर देशद्रोह का मुकदमा लगा दिया है और गिरफ्तार कर उसे असम ले जाने की तैयारी में है. हालांकि, वो पुलिस की पकड़ से बाहर है. खालिस्तान आंदोलन की सुलगी आग ने पंजाब पॉलिटिक्स में उथल-पुथल ला दिया है. भगवंत मान की सरकार कानूनी कोर्ट से जनता की अदालत तक बैकफुट पर है और विपक्षी पार्टी केंद्र की साजिश का आरोप मढ़ रही है, जबकि मीडिया अमृतपाल को भिंडरावाला 2.0 की संज्ञा दे रही है.

फिर क्यों सुलग उठी है खालिस्तान की मांग ?

खालसा शब्द अरबी भाषा के खालिस से बना है, जिसका मतलब होता है शुद्ध, इसी को ध्यान में रखकर सिखों के 10वें गुरु, गुरू गोविंद सिंह ने साल 1699 में सिख में खालसा पंथ की स्थापना की थी. खालिस्तान इसी खालसा से बना है और इसका मतलब है- खालसाओं के राज. इसे सीधे शब्दों में समझें तो सिखों का राज. भारत में आजादी से पहले 1929 के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव रखा, जो भारी बहुमत से पास हो गया. हालांकि, 3 नेताओं ने इसका विरोध किया. 1. मोहम्मद अली जिन्ना 2. मास्टर तारा सिंह और 3. भीमराव अंबेडकर जिन्ना मुस्लमानों के लिए और तारा सिंह सिखों के लिए अलग प्रांत बनाने की मांग पर जोर दे रहे थे और

आर्थिक, शैक्षणिक और धार्मिक हितों की रक्षा की बात कही गई. यह समझौता 5 साल तक ही चला और फिर टूट गया. इसकी वजह थी- अंबेडकर दलितों के प्रतिनिधित्व पर हालांकि, कांग्रेस के वरिष्ठ भाषा के आधार पर हो रहे राज्यों का बंटवारा मास्टर तारा सिंह ने 1961 नेताओं के हस्तक्षेप के बाद उस वक्त यह मसला सुलझ गया. में अलग पंजाबी सूबा की मांग को लेकर आमरण अनशन शुरू कर खालिस्तान को लेकर बात बिगड़ी आजादी के वक्त 1947 में भारत दिया, तारा सिंह के समर्थन में हजारों सिख एकजुट हो गए. सिखों का कहना था कि भाषा के आधार पर अलग पंजाब राज्य का गठन हो और गुरुमुखी को भी भाषाओं की सूची में शामिल किया जाए. इस आंदोलन को उनकी बेटी राजेंद्र कौर ने खत्म करवाई. 1966 में भाषा के आधार पर पंजाब को अलग राज्य बना दिया गया. हालांकि, चंडीगढ़ को अलग करते हुए केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया. मास्टर तारा सिंह की मौत के बाद खालिस्तान आंदोलन

से पाकिस्तान के अलग होने और पंजाब के दो हिस्से में बंटने के बाद मास्टर तारा सिंह खालिस्तान की मांग उठाने लगे, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हस्तक्षेप किया और सबकुछ ठीक होने का आश्वासन दिया.

खालिस्तान आंदोलन में मास्टर तारा सिंह की भूमिका

अकाली आंदोलन के संस्थापक सदस्य मास्टर तारा सिंह ही खालिस्तान आंदोलन के अगुवा थे, तारा सिंह सिखों को राजनीतिक हिस्सेदारी देने के हिमायती रहे हैं. उन्हें उस वक्त मोहम्मद जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने के लिए कहा था, बदले में अली जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में उप प्रधानमंत्री बना देने का वादा किया था. लेकिन तारा सिंह ने इस मांग को हुकरा दिया. 1956 में पंडित नेहरू और मास्टर तारा सिंह के बीच एक समझौता हुआ. इसमें सिखों के 1966 में तारा सिंह की मौत के बाद पंजाब सूबा बना और 1967 में अकाली दल ने पंजाब में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. गुरुनाम सिंह को अकाली दल का नेता चुना गया और वे मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन 250 दिन बाद ही उनकी सरकार में बगावत हो गई. लक्ष्मण सिंह गिल के नेतृत्व में 16 विधायकों ने अलग गुट बना लिया. इन गुटों को कांग्रेस ने समर्थन दे दिया. पंजाब में 1971 तक राजनीतिक उथल-पुथल का दौर जारी रहा. 1971 में बांग्लादेश विभाजन के बाद पंजाब में इंदिरा गांधी को जबरदस्त समधन मिला. इस चुनाव में अकालियों का पत्ता साफ हो गया. पंजाब में हार के बाद अकालियों ने खालिस्तान की मांग फिर से उठा दी. 1973 में अकाली दल ने आनंदपुर साहिब में एक तासास किया. 1970 ऑपरेशन के दौरान 3000 लोगों के मारे जाने का दावा किया. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी का जमकर विरोध हुआ कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई सिख नेताओं ने पार्टी से इस्ती इस ऑपरेशन के बाद कई जगहों पर भावना से सिख समुदाय के लोग कार की सिखों की आबादी अच्छी तादाद में है, वहां से भी खालिस्तान की मांग उठने लगी. कनाडा खालिस्तान को लेकर प्रदर्शन का हॉटस्पॉट बन गया. विदेशों में खालिस्तान को लेकर एलनगंगटन बने, हालांकि, भारत सरकार से आतंकी संगठन घोषित कर रखा है।

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