हाल ही में आयी मूवी KGF का एक डायलॉग बहुत प्रचलित हुआ था कि “माँ सबसे बड़ी योद्धा होती है|”
और शायद ही हमारे देश में ऐसा कोई हो जो बच्चे के जीवन में माता की भूमिका से इत्तफ़ाक न रखता
हो लेकिन जैसे ही बात आती है स्कूली शिक्षा की वहाँ फिर इस प्रथम गुरु की भूमिका कम होती जाती
है, व् उसका स्थान कई अन्य बातें लेने लगती है और फिर बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी स्कूल व्
शिक्षकों तक सीमित होने लगती है|
वर्ष 2020 में हमारे देश में नई शिक्षा नीति आई और इस नीति के सफल क्रियान्वयन के लिए वर्ष
2021 में निपुण भारत कार्यक्रम की शुरुआत की गई| निपुण भारत अभियान के उद्देश्यों की बात करें तो
वर्ष 2026-27 तक आते – आते हमारे देश के बच्चों को कक्षा 3 के अंत तक पढ़ने – लिखने व् अंक
गणित करने की क्षमता हासिल कर लेनी चाहिए| यदि हम असर सर्वे के परिणामों की बात करें जिसकी
शुरुआत वर्ष 2005 में हुई व् जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में वर्ष दर वर्ष बच्चों की आधारभूत
दक्षताओं में हुए परिवर्तन को देखना हैं| असर 2022 की रिपोर्ट बताती है कि देश में कक्षा 3 के लगभग
20% बच्चे ही कक्षा 2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते हैं| यदि हम इन परिणामों को सामने रखकर निपुण
भारत अभियान के लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहते हैं तो क्या यह आवश्यक नहीं होगा कि इस धारणा को
बदला जाए कि बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ स्कूल व् शिक्षकों की न होकर वरन् पूरे समुदाय की
है|
अंगना म शिक्षा व् पहला पाउन जैसे कार्यक्रमों और उनके प्रभावों पर अभी और शोध की आवश्यकता है|
लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि यदि माता शिक्षित व् सक्षम है तो इसका
सीधा असर उसके बच्चे की शिक्षा पर होता है और यदि हमें निपुण भारत के लक्ष्यों को प्राप्त करना है
व् कायम रखना है तो हमें माताओं की क्षमता पर विश्वास करना होगा, उनकी क्षमता वृद्धि करनी होगी
और उनको आत्मविश्वास दिलाना होगा कि वह अपने बच्चों के सर्वागीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका
निभा सकती हैं | माता निपुण होगी तो बच्चे भी निपुण होंगे |
गौरव शर्मा
राज्य प्रमुख
प्रथम एजुकेशन फाउन्डेशन
छत्तीसगढ़
