भारतीय पत्रकारिता को पिछले दिनों कई आघात लगे। सबसे अधिक क्षति वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक का निधन,फिर नईदुनिया के अभय छजलानी का जाना भारतीय पत्रकारिता के लिए अपूर्णीय क्षति हैं। आर्यावर्त परिवार की ओर से दोनों को श्रद्धांजलि। वैदिक जी और छजलानी जी का जाना एक युग का अंत ही माना जाएगा। ऐसा युग जिसे भारत में पत्रकारिता का स्वर्णकाल कहा जाए तो संभवतः गलत नहीं होगा। लेकिन इनके जाने से भी कहीं अधिक बड़ा नुकसान हमारी मुख्यधारा की मीडिया का पतन है। जिस तरह अतीक अहमद के काफिले का कवरेज टीवी मीडिया ने किया वो खुद के निम्नता के चरम पर पहुंचने में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहता। देश के अधिकतर लोगों को अब यह विश्वास हो गया है कि समाचार चैनल न्यूज़ नहीं मनोरंजन परोसते हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी अपनी प्रेसवार्ता में खुले आम पत्रकारों पर बीजेपी के लिए काम करने का दोष मढ़ देते हैं। पहले के दौर में नेताओं की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि वो पत्रकारों के सवाल टालें। टालना तो दूर राहुल गांधी खुलेआम पत्रकारों पर ही आरोप लगा रहे हैं। वह भी उन पत्रकारों पर जो सालों से कांग्रेस बीट कवर कर रहे हैं। वैदिक जी और छजलानी जी के दौर में अगर कोई नेता ऐसा करता तो उस नेता का पत्रकार सामूहिक बहिष्कार करते। लेकिन अब की मीडिया में इतनी हिम्मत नहीं कि वो किसी नेता से कड़े सवाल कर सके। यही वजह है शायद कि देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को मीडिया की निष्पक्षता पर चिंता जाहिर करनी पड़ी। स्वयं को लोकतंत्र का
चौथा स्तंभ होने का दावा करने वाली मीडिया अपनी वो हैसियत लगातार खोता जा रहा है। यहां बात केवल सरकार के पक्ष में माहौल बनाने की नहीं है। मीडिया संस्थान परोक्ष रूप से ऐसा हमेशा से करते आ रहे हैं या यूं कहें कि पहले की सरकारें मीडिया का इस्तेमाल जनता की राय बनाने में दबे-छिपे ढंग से करती आई हैं। लेकिन मीडिया में जैसे-जैसे मालिकों ने अपना कारोबारी नजरिया थोपना शुरू किया है वैसे-वैसे संपादकों की हैसियत घटती गई है। इसके लिए केवल मालिकान ही नहीं वो संपादक भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने मालिकों को ताकतवर होने दिया।अब मेनस्ट्रीम मीडिया अंधभक्ति और अंधविरोध में फंसकर रह गया है। तथ्यपूर्ण खबरें, विचार, विश्लेषण के लिए पाठक या दर्शन यहां वहां भटक रहा है। वह अपनी आवाज सोशल मीडिया के माध्यम से उठा रहा है। उसका भरोसा मीडिया से उठ चुका है। अब इस भरोसे को दोबारा हासिल करने में एक युग भी बीत सकता है क्योंकि भरोसा टूटने में एक क्षण लगता है और बनने में सालों। हमारी कोशिश पर आप अपनी राय हमें जरूर भेजिए। आप हमारी खबरों के विषय में या अपनी कोई बात रखने के लिए realaryawartnews@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।

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