ये वह साल है जब मध्यप्रदेश को नई सरकार मिलने वाली है और ये साफ है कि मुकाबला इस बार भी कांग्रेस के कमलनाथ का बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान या कहे बीजेपी के मजबूत संगठन से है। वैसे चालीस साल से देश की राजनीति में सक्रिय कमलनाथ इस बार हर कदम बेहद ही सावधानी से रख रहे हैं। मुद्दा चाहे स्थानीय जमावट का हो, सर्वे का हो, कर्मचारियों का हो या फिर सोशल मीडिया का हो, वे हर पहलू पर बारीकी से नजर रख रहे हैं। यहां तक की भोपाल में रहने के दौरान वे हर शाम कोर ग्रुप के साथ मीटिंग कर न सिर्फ दिनभर का अपडेट लेते हैं बल्कि अगले कुछ दिनों के असाइनमेंट पर निर्देश भी देते हैं। चलिए आपको सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं कि आखिर वे ऐसे क्या सात वार हैं जिनके जरिए कमलनाथ न सिर्फ बीजेपी बल्कि संघ के नेटवर्क को भी मात दे सकते हैं।
1.बूथ कमेटी, मंडलम और सेक्टर को महत्व
अगर आप पिछले कुछ दिनों से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का शेड्यूल देखेंगे तो उसमें हमेशा मंडलम और सेक्टर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ बैठक का उल्लेख रहता है। दमोह सीट पर उपचुनाव में जीत के बाद से कमलनाथ का सबसे ज्यादा भरोसा मंडलम और सेक्टर समितियों पर ही है। क्योंकि, वे जानते हैं कि बीजेपी के पन्ना प्रमुख या हाफ पन्ना प्रमुख को वे इसी रणनीति से शिकस्त दे सकते हैं लेकिन यहां उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती संघ का नेटवर्क है जो लगातार हर स्तर पर सक्रिय रहता है ।
2. प्रकोष्ठ की संख्या बढ़ाना
इस साल की शुरुआत में कांग्रेस में करीब 20 प्रकोष्ठ थे लेकिन कमलनाथ ने इनकी संख्या 45 तक पहुंचा दी है। जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अलग-अलग समुदायों के साथ पंचायत का ये एक तोड़ है क्योंकि इसके जरिए कमलनाथ हर समुदाय के कुछ प्रतिनिधियों और प्रभावशाली लोगों से मुलाकात करके पूरे समुदाय को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा वे हर समुदाय के सामाजिक कार्यों में सक्रियता से हिस्सा लेकर यह जताने में भी पीछे नहीं हैं कि वे किसी समुदाय विशेष से दूरी बनाकर रखते हैं। अपनी इस रणनीति के जरिए वे संघ के उन तमाम अनुषागिंक संगठनों का असर भी कम करने की कोशिश में है जो चुनाव के वक्त प्रभावी भूमिका में रहते हैं।
3.कार्यकर्ताओं से जीवंत संपर्क
वैसे तो इस काम के माहिर पहले दिग्विजय सिंह और अब शिवराज सिंह चौहान माने जाते हैं। जिनके बारे में कहा जाता है कि हर पंचायत में उनका कोई न कोई परिचित है। लेकिन आंकड़ें आपको हैरान कर सकते
हैं कि एक जनवरी से 31 मार्च तक कमलनाथ करीब 40 जिलों की 95 विधानसभा सीटों का खुद दौरा कर चुके हैं। वे वहां न सिर्फ आमसभा करते हैं बल्कि संगठन की बैठक और पत्रकार वार्ता भी करते हैं। जाहिर तौर पर कमलनाथ का ये नया वर्किंग कल्चर उन्हें लोगों से जोड़ने में काफी मददगार साबित हो रहा है। ये उन कार्यकर्ताओं के लिए भी हैरान करने वाला है जो कमलनाथ के जन्मदिन पर या तो दिल्ली में उनके बंगले पर जाते थे या फिर भोपाल में सिविल लाइन्स पर।
4.अपनी योजनाओं की तारीफ और भविष्य को लेकर सोच
राजनीति के मंजे मंजाए खिलाड़ी कमलनाथ ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि सिर्फ सरकार को कोसने से वोट मिलना मुश्किल है। इसके लिए जरुरी है अपनी योजनाओं को जनता तक पहुंचना। इसका नतीजा ही है कि सरकार के लाडली-बहना योजना के तहत हर पात्र महिला को 1000 रुपए देने के जवाब में उन्होंने 1500 देने की घोषणा कर दी। अलावा इसके 500 रुपए में सिलेंडर और 300 रुपए में 300 यूनिट बिजली जैसे वादे भी पार्टी के नेता खुलकर बता रहे हैं। ऐसे में दुविधा बीजेपी के लिए भी है। दिल्ली के नेता भले ही फ्री में मिलने वाली चीजों को रेवड़ी कल्चर कहें लेकिन मध्यप्रदेश के स्तर पर इस रास्ते से उनका मुकाबला करना मुश्किल होगा। क्योंकि ऐसी कई योजनाएं है जहां सरकार मुफ्त का फायदा देने की बात कर रही है, लिहाजा ऐसे में बीजेपी उन्हें रेवड़ी कल्चर पर घेर पाएगी ये आसान नहीं है।
5.समन्वय का संदेश
कांग्रेस में जब भी समन्वय की बात आती है तो वह गुटबाजी में तब्दील होती दिखती है। बार-बार दिग्विजय सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह, सुरेश पचौरी का जिक्र होता है। वैसे इस फेहरिस्त में आजकल जीतू पटवारी का नाम भी जुड़ गया है। लेकिन सिलसिलेवार तरीके से देखें तो दिग्विजय सिंह कह चुके हैं कि कमलनाथ के नेतृत्व में ही चुनाव होगा। अरुण यादव को कमलनाथ अपने साथ कुछ शहरों में ले जाकर उनका गुस्सा शांत कर चुके हैं। अजय सिंह इस वक्त खुद की सीट जीतने की कोशिश में है और सुरेश पचौरी पूरी तरह से कमलनाथ के साथ खड़े रहते हैं। इसके उलट बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक, सीएम शिवराज के भरोसेमंद और संगठन के कट्टर नेताओं के बीच खींचतान की खबरें आती रहती हैं। वैसे हर बार बुंदेलखंड और मालवा का जिक्र करना जरुरी नहीं है।
6.दिग्विजय सिंह को अहमियत
जैसा कि ऊपर हमने बताया कि दिग्विजय सिंह उन एक-दो नेताओं में से है जिनके हर पंचायत में समर्थक हैं। कमलनाथ अपने इस साथी की खूबी से अच्छी तरह वाकिफ हैं और यही वजह है कि जहां-जहां कमलनाथ दौरे करने जाते हैं दिग्विजय सिंह पहले ही बिसात बिछा चुके होते हैं यानि विरोध का कोई मुद्दा ही नहीं बचता। दिग्विजय सिंह न सिर्फ नाराज नेताओं को समझाते-बुझाते हैं बल्कि उन्हें ये अहसास भी कराते हैं कि इस बार नहीं तो कभी नहीं। अगले कुछ दिनों में आप ये समीकरण बुंदेलखंड को लेकर देख सकते हैं। इसके उलट बीजेपी मे देखें तो खेमेबंदी साफ नजर आती है।मालवा यदि कैलाश विजयवर्गीय का है तो चंबल सिंधिया का और भोपाल- मध्य क्षेत्र सीएम शिवराज का बंटा हुआ है।
7.मीडिया से रिश्ते
दिल्ली से आने और सरकार के मुखिया बनने के बाद बार-बार कमलनाथ को लेकर कहा जाता था कि पत्रकारों से नहीं मिलते हैं। बीजेपी के हर बड़े नेता ने उनके ‘चलो-चलो’ कहने को लेकर काफी बयानबाजी भी की लेकिन अब हालात जुदा हैं। कमलनाथ ने न सिर्फ भोपाल में दोपहर भोज के दौरान पत्रकारों से मुलाकात की बल्कि वो इंदौर में भी पत्रकारों से खुलकर मिले और अब हर संभाग में वे ऐसा ही करने वाले हैं। इसके अलावा हर जिले और विधानसभा में भी वे न सिर्फ पत्रकारों से मिल रहे हैं बल्कि प्रेस कांफेंस भी कर रहे हैं। जाहिर तौर पर कमलनाथ का ये नया वर्जन हर मीडियाकर्मी को न सिर्फ पसंद आ रहा है बल्कि अंदर ही अंदर वो खुद को कांग्रेस के करीब पा रहा है।
ये तो कमलनाथ के सात वार हैं लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं है। पिछले पांच बार से हार रही सीटों पर भोई ही वो पहले ही टिकट दे दें लेकिन इस बार उनके पास छिंदवाड़ा मॉडल की तरह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है। इसके अलावा एक बार सरकार गवां देने का दंश जीवन भर उनका पीछा नहीं छोड़ने वाला है। इससे भी बड़ी बात ये कि अडानी से उनके रिश्ते और राहुल गांधी से तल्खी को लेकर बीजेपी उन्हें बख्शने वाली नहीं है।

कार्यकारी संपादक